________________ आगम निबंधमाला सेवा में उदकमुनि ने चातुर्याम धर्म से पंच महाव्रत रूप धर्म स्वीकार किया एवं क्रमश: आत्मकल्याण की साधना में लीन बन गये। इसके बाद में उदकमुनि की गति का वर्णन प्राप्त नहीं है / शक्यता मोक्ष गति की अधिक लगती है / [सूयगडांग सूत्र के दूसरे श्रुतस्कंध के अंतिम (सातवें) अध्ययन में यह संवाद है] निबंध-१७ श्रेणिक पुत्र मेघकुमार के पांच भव भगवान ने मेघ मुनि को उसके दो पूर्व भवों का विवरण सुनाया। यहाँ से तीसरे भव में हे मेघ ! तूं हजार हाथी-हाथिनियों का अधिपति समेरुप्रभ नामका हाथी था / एक समय वन में दावानल प्रकटा / अग्नि से बचने के लिये समस्त प्राणी अपने प्राण बचाने इधर से उधर भागने लगे / तूं भी अपने यूथ से बिछुड़ गया / अकेला ही एक सरोवर पर पहुँचा / पानी पीने की आशा से उसमें उतरा / कीचड़ में फँस गया, पानी तक पहुँच नहीं सका। वृद्ध जर्जरित 120 वर्ष की तेरी काया थी। प्रयत्न करने पर पुनः बाहर भी नहीं निकल सका किंतु अधिक- अधिक कीचड़ में फँसता गया / उस समय एक जवान हाथी पानी पीने वहाँ आया। जिसे तूं ने अपने झुंड़ में से बलपूर्वक निकाल दिया था / तुझे देखते ही उसने पुराने वैर को याद किया, तीक्ष्ण दांतो से तीन बार प्रहार किया फिर पानी पीकर चला गया / उस प्रहार से तुझे प्रचंड वेदना हुई जिस सात दिन-रात सहन करता हुआ मर कर तू पुनः जंगल में मेरुप्रभ हाथी बना / - इस बार भी तूं सात सौ हाथियों का अधिपति बना एवं सुख पूर्वक रहने लगा / एक बार जंगल में दावानल प्रगटा जिसे देखकर विचार करते-करते तुझे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ, पूर्वभव को स्पष्ट देखने लगा / बारंबार होनेवाले दावानल से बचने का उपाय ढूंढ़ कर तूंने अन्य साथियों के सहयोग से एक योजन प्रमाण गोलाकर क्षेत्र को साफ करके वृक्षों से रहित मेदान बना दिया। ताकि दावानल के समय जंगल के पशु इस मैदान में आकर निर्भय एवं सुरक्षित रह सके। यथासमय फिर दावानल प्रगटा / सभी प्राणी सुरक्षित उस मैदान में पहुँच गये। / 65 /