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________________ आगम निबंधमाला शब्द लगाना आवश्यक नहीं है एवं योग्य भी नहीं है / और दूसरे समाधान में समझाया गया है बारह व्रतधारी श्रावक के विविध प्रकार की हिंसा का जो त्याग होता है उसमें त्याग ज्यादा है और आगार कम है दिशाव्रत और देशावकासिक व्रत की अपेक्षा / प्रश्न- क्या त्रस जीवों की हिंसा का त्याग कराने में और स्थावर जीवों की छूट रखने से साधु को उन जीवों की हिंसा की अनुमोदना होती है ? . उत्तर- उदकमुनि के इस प्रश्न के समाधान में मूलपाठ में प्रयुक्त गाथापति चोर विमोक्षण न्याय का अर्थ विश्लेषण व्याख्याकार ने कथानक द्वारा समझाया है कि कोई गाथापति के छ पुत्रों को किसी अपराध में राजा ने फाँसी की सजा घोषित कर दी / गाथापति ने स्वयं उपस्थित होकर राजा से अत्यधिक अनुनय विनय करी / राजा नहीं माना। फिर भी उसने अपना प्रयत्न चाले रखा। अंत में राजा ने एक पुत्र को छोडना स्वीकार किया। सेठ ने ज्येष्ठ पुत्र को जीवित बचा लिया। फिर भी सेठ जिस तरह पांच पुत्रों की हिंसा का अनुमोदक नहीं कहलाता है / वैसी ही परिस्थिति से श्रावकों के स्थूल हिंसा का त्याग कराने में अवशेष हिंसा के प्रेरक या अनुमोदक वे श्रमण नहीं बन जाते / श्रावक अपनी शक्ति अनुसार ज्यादा से ज्यादा हिंसा का त्याग करे यही भाव श्रमणों का होता है ।अत: श्रमण ऐसे प्रत्याख्यान कराने पर अपनी श्रमण मर्यादा से च्युत नहीं कहला सकते / गौतम स्वामी की उदारता और परिश्रम का परिणाम :उत्तर- उदक मुनि की सारी समस्या हल हो गई। उन्हें समझ में आ गया कि जो भी प्रत्याख्यान कराने की पद्धति है वह गलत नहीं है / त्रसभूत लगाना जरूरी नहीं है और श्रावक के गृहस्थ जीवन की परिस्थिति अनुसार मुनि उसे शक्य प्रत्याख्यान आगार सहित करवा सकते हैं / समाधान हो जाने पर उदक मुनि ने गौतम स्वामी को श्रद्धा पूर्वक वंदन व्यवहार किया और भगवान महावीर के शासन में सम्मिलित होने के अर्थात् पुनः दीक्षित होने के भाव व्यक्त किये / तब गौतम स्वामी उस गृह प्रदेश(कमरे) में से निकलकर उदक मुनि को लेकर बगीचे में भगवान की सेवा में पहुँच गये / फिर भगवान महावीर की / 64
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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