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________________ आगम निबंधमाला समाधान- श्री गौतम स्वामी ने उदकमुनि की उलझन को समझ लिया और वे उसे समझाने लगे कि प्रत्याख्यान के पीछे जो आशय होता है वही उस शब्द से प्रत्याख्यान होता है / अत: त्रस जीवों की हिंसा का त्याग कराने वाले मुनि का एवं श्रावक का आशय त्रसनाम कर्म वाले जीवों से ही है / जब उन जीवों के त्रस नामकर्म का उदय नहीं रहेगा स्थावर नामकर्म का उदय होगा, तब उनकी हिंसा का त्याग नहीं रहने से उस स्थावर जीवों की हिंसा से श्रावक का व्रत भंग नहीं होगा और व्रत कराने वाला भी दुष्प्रत्याख्यान कराने का भागी नहीं होगा। इसी बात को स्पष्ट करते हुए गौतम स्वामी ने दृष्टांत के साथ समझाया कि किसी व्यक्ति को मुनि,श्रमण,सन्यासी की हिंसा करने का त्याग है / यदि उस समय कोई एक मुनि संयम त्याग कर पुनः गृहस्थ बन गया तो फिर उसकी हिंसा का त्याग उस व्यक्ति को नहीं रहेगा और यदि वह गृहस्थ पुनः दीक्षा ग्रहण कर लेता है तो फिर वह व्यक्ति अपने प्रत्याख्यान अनुसार उसकी हिंसा नहीं कर सकेगा। अत: इस प्रत्याख्यान में मुनिभूत ऐसा बोले बिना भी आशय स्पष्ट हो जाता है। वैसे ही त्रस के साथ भूत शब्द नहीं बोलने पर भी त्रसनाम कर्म वाले एवं त्रस पर्याय में स्थित जो भी जीव हों उनकी हिंसा का त्याग रहेगा। अत: दुष्प्रत्याख्यान होने का कोई कारण नहीं है। प्रश्न- उदकमुनि के अन्य और क्या प्रश्न थे ? ... उत्तर- अपनी उलझन युक्त अवस्था में उनका यह भी तर्क था कि त्रस में रहे जीव सभी स्थावर काय में चले जायेंगे तो श्रावक व्रत रहित हो जायेगा? . समाधान- गौतम स्वामीने समझाया कि श्रावक के क्षेत्र सीमा होती है। उसके बाहर त्रस स्थावर सभी जीवों की हिंसा का त्याग होता है। और सीमा के अंदर भी स्थावर जीवों की हिंसा की मर्यादा होती है। अतः श्रावक हिंसा के त्याग रहित कभी नहीं बनता। श्रावक की उम्र संख्याता वर्ष की ही होती है इतनी सी उम्र में समस्त त्रस जीव स्थावर बन जाय यह भी संभव नहीं है। ... इस प्रकार प्रथम समाधान में समझाया गया कि त्रस जीवा की हिंसा का त्याग करना दुष्प्रत्याख्यान नहीं है और त्रस के साथ भूत
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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