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________________ आगम निबंधमाला प्रयत्न करना चाहिये कि कितनी बार दोष सेवन की भी शुद्धि आलोचना प्रायश्चित्त और आरोपणा आदि होती है / ऐसे स्यादवादमय जिन शासन में मन कल्पित एकांतिक प्ररूपणाएँ करना और भेड़ चाल से अबूझ उक्तियों द्वारा आक्षेप करना सर्वथा अनुचित है / ऐसी होशियारी की वत्ति को सरलता और समभाव धारण करके त्यागना ही श्रेयश्कर है। ऐसा करने से स्वयं का उत्कर्ष और अन्य का अपकर्ष वत्ति से कर्मबंध का अभाव होगा और उससे आत्मा का अहित रुकेगा। अब, सुज्ञ पाठकों को यही समझना है कि बिना विचारे भेड़ चाल से चलने वाली उक्तियाँ लगाकर अपनी आत्मा का अहित नहीं करना चाहिये एवं दूसरों को भी निरर्थक अपमानित नहीं करना चाहिये / . निबंध-१६ उदक-पेढालपुत्र एवं गौतमस्वामी की चर्चा प्रश्न- उदक मुनि ने गौतम स्वामी की स्वीकृति मिलने पर कौन सा प्रश्न किया ? उत्तर- उदकमुनि का प्रश्न तात्त्विक उलझन युक्त या भंग जालमय नहीं था किंतु सीधा सरल एवं श्रावक जीवन से संबंधित था। सामान्य प्रश्न होते हुए भी शीघ्र समाधान न मिलने से और उदय कर्म संयोग से वह क्लिष्ट बन जाता है एवं क्रमश: एकपक्षीय चिंतन से आग्रह भरा बन जाता है। श्रावक की स्थूल हिंसा त्याग व्रत में निरपराधी त्रस जीवों की हिंसा का त्याग होता है / उदकमुनि का चिंतन ऐसा था कि त्रस जीव की हिंसा के त्याग से वर्तमान में त्रस पर्याय में मौजूद सभी जीवों को मारने का प्रत्याख्यान हो जाता है फिर भले वह जीव स्थावरकाय में भी चला जाय तो भी वह श्रावक उस जीवों की हिंसा नहीं कर सकता और एकेन्द्रिय रूप उस त्रस जीव की जो उस श्रावक से हिंसा होगी तो उसका वह प्रत्याख्यान भंग हो जाता है। अत: केवल त्रस जीव की हिंसा का त्याग ऐसा नहीं बोलकर त्रसभूत (त्रस अवस्था में रहे हुए) जीवों की हिंसा का त्याग ऐसा बोलकर प्रत्याख्यान कराना चाहिये / 62
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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