________________ आगम निबंधमाला महान संघ का जिन शासन का हित करना और कहाँ सम्पूर्ण झोंपड़ी जलाकर केवल ताप करना। इसमें आकाश पाताल का अंतर है तथापि भेड़ चाल से ऐसी कहावत लगा दी जाती है। यह कहावत तो तब लगती है जब कोई साधु छोटी-सी बात के लिए या किसी के अल्पतम उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए संयम छोड़ कर गहस्थ बन जाता है, सदा के लिए सम्पूर्ण संयम का नाश कर देता है जिस प्रकार कि झोपड़ी सदा के लिए नष्ट हो जाती है। किन्तु विवेक पूर्वक या आज्ञा पूर्वक, अपवाद स्वरूपं, संघ या शासन हित अल्पतम दोष लगाने एवं प्रायश्चित्त कर शद्धि करने की भावना वाले को खुद की झोपड़ी जलाने की उक्ति से लांछित करना व्यक्तिगत डेढ़ होशियारी या अबूझ वत्ति ही है। ... वास्तव में तो उक्त संघ हित के लिए विवेकयुक्त दोष सेवन करना दूसरों के लिए खुद का सचित और जीवन का आवश्यक पदार्थ शरीर का आधा एक किलो खून अत्यावश्यक परिस्थिति में देने के समान है जिससे कमजोरी आ सकती है और उसकी पुनः पूर्ति न करे और बारंबार खून देता रहे, अत्यावश्यक या अनावश्यक परिस्थिति में खून निकालता रहे, देता रहे तो वह अविवेकी वतिवाला होगा और वही निरर्थक (नाहक) शरीर का नाश कर बैठने वाला होगा। उसी प्रकार जो विशेष परिस्थिति में दोष लगाकर पुनः शुद्धि करने के अतिरिक्त, बारम्बार दोष लगाता रहे या अत्यन्त आगाढ़ अपवाद परिस्थिति के बिना ही संयम में दोष लगाता रहे और किसी प्रकार शुद्धि न करे, न ही उसकी खेद विवेक और शुद्धि करने का भाव रखे तो उसका भी संयम जीवन नष्ट होते देर नहीं लगती है अर्थात् ऐसा करने वाले का क्रमशः सयम जीवन नष्ट हो जाता है / सार यह है कि तिल और ताड़ को एक सरीखा करके भेड़ चाल से किसी भी उक्ति से लाछित करना गलत है एवं अपनी आत्मा को भारी करना है / अत: उपरोक्त न्याय एवं दृष्टांत को समझ कर विवेक पूर्वक चिन्तन एवं प्ररूपण करना चाहिये / . कुम्भार वाला मिच्छामि दुक्कडं :- कोई श्रमण परिस्थितिवश, संघ हित या शासन हित में एक बार या अनेक बार किंचित दोष 60