________________ आगम निबंधमाला संथारा कब आवश्यक :- उपरोक्त प्रकार की आन्तरिक प्रेरणा से प्रेरित होकर साधक सामाधिमरण अंगीकार करता है / किन्तु मानव जीवन अत्यन्त दुर्लभ है। आगम में चार दुर्लभ उपलब्धियाँ कही गई है। मानव जीवन उनमें परिगणित है / देवता भी इस जीवन की कामना करते हैं / अतएव निष्कारण जब मन में उमंग उठी तभी इसका अंत नही किया जा सकता / सयमशील साधक मनुष्य शरीर के माध्यम से आत्महित सिद्ध करता है और उसी उद्देश्य से इसका संरक्षण भी करता है / परन्तु जब ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए कि जिस 'ध्येय की पूर्ति के लिए शरीर का संरक्षण किया जाता है, उस ध्येय की पूर्ति में वह बाधक बन जाए तब उसका परित्याग कर देना ही श्रेयस्कर होता है / प्राणान्तकारी कोई उपसर्ग आ जाए, दुर्भिक्ष के कारण जीवन का अन्त समीप जान पड़े, वद्धावस्था अथवा असाध्य रोग उत्पन्न हो जाए तो उस अवस्था में हाय-हाय करते हुए आर्तध्यान के वशीभूत होकर प्राण त्यागने की अपेक्षा समाधिपूर्वक स्वेच्छा से शरीर को त्याग देना ही उचित है / शरीर हमें त्यागे इसकी अपेक्षा यही बेहतर है कि हम स्वयं शरीर को त्याग दें। ऐसा करने से पूर्ण शान्ति और समभाव बना रहता है / . समाधिमरण अंगीकार करने के पूर्व साधक को यदि अवसर मिलता है तो वह उसके लिए तैयारी कर लेता है / वह तैयारी संलेखना के रुप में होती है / काया और कषायों को कशतर करना संलेखना है। कभी कभी यह तैयारी बारह वर्ष पहले से प्रारंभ हो जाती है / ऐसी स्थिति में समाधिमरण को आत्मघात समझना विचार हीनता है। परघात की भाँति आत्मघात भी जिनागम के अनुसार घोर पाप है, नरक का कारण है। आत्मघात कषाय के तीव्र आवेश में किया जाता है जब कि समाधिमरण कषायों की उपशान्ति होने पर उच्चकोटी के समभाव की अवस्था में ही किया जा सकता है / ___ समाधिमरण अनशन के तीन प्रकार है- (1) भक्तप्रत्याख्यान, (2) इंगितमरण और (3) पादपोपगमन / जिस समाधिमरण में साधक स्वयं शरीर की सार-संभाल करता है और दूसरों की भी सेवा स्वीकार कर सकता है, वह भक्तप्रत्याख्यान कहलाता है / इंगितमरण स्वीकार