________________ आगम निबंधमाला क्यों कि नवकार मंत्र में सिद्धों से पहले प्रथम पद में अरिहंत को स्थान देने से, लोगस्स में आगे 24 तीर्थंकरों का ही नाम आया होने से और णमोत्थुण में वर्णित गुण स्वरूप के तीर्थंकरों में ही घटने वाले होने से नवकार मंत्र, लोगस्स और णमोत्थुण में अरिहंत शब्द से केवल तीर्थंकर को ही लेना आगम सम्मत है / अत: इन स्थानों में केवली को लेना सर्वथा अनुचित है। पाँच पदों की भाव वंदना के प्रथम पद में भी केवली नहीं समझना यह भी इससे स्वत: ही सिद्ध हो जाता है / क्यों कि यह भाव वंदना नवकार मंत्र के पाँच पदों का ही विस्तार है। पहले पद की भाव वंदना के गुण भी इसी बात की पुष्टि करते हैं / प्रतिक्रमण सूत्र में यों तो भाव वंदना खुद ही कुछ सैकड़ों वर्षों से प्रक्षिप्त है क्यों कि वह आगम का मूल पाठ है ही नहीं / और उसमें भी जो प्रथम पद में 2 क्रोड व 9 क्रोड केवली का पाठ है वह तो और भी बाद में स्वछंद मति से या भ्रम से प्रक्षिप्त किया गया है / इसका कारण यह है कि अनेक स्थलों से छपी प्रतिक्रमण की पुस्तकों में, इस विषय में मत-भेद देखने को मिलते हैं यथा-(१) गुजरात राजकोट से सं. 2022 में (2) शाहपुरा से संवत 1998 में (3) अजमेर से संवत 2020/2024 में (4) धर्मदास जैन मित्र मण्डल रतलाम से संवत 1993 में (5) धूलिया-अमोलक ऋषि जी म.सा. द्वारा संवत 2008/2030 में (6) गुलाबपुरा से दसवीं आवति संवत 2033 में, इन छ: प्रतियों में प्रथम पद में 2 क्रोड 9 क्रोड का पाठ नहीं है / इसके विपरीत कई प्रतियों में अर्थात् (1) अजमेर (2) रतलाम (3) धूलिया (4) गुलाबपुरा, इन चार प्रतियों में पाँचवें पद में 2 क्रोड 9 क्रोड केवली का पाठ भी विशेष रूप से स्पष्ट अलग कहा गया है / इस तरह मारवाड़, मालवा व महाराष्ट्र के ये उक्त प्रमाण देखने को मिले हैं। सार यह है कि भाव वन्दना के अशुद्ध प्रचार से ही यह विषय कुछ असमजस में पड़ा है किन्तु शास्त्रकार के अलग-अलग आशय को ध्यान में लेकर समझ लेने से समाधान हो सकता है कि नमस्कार मंत्र के प्रथम पद में तो तीर्थंकर ही है /