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________________ आगम निबंधमाला निबंध-१३ केवली प्रथम पद में नहीं, पाँचवे पद में शास्त्रोंमें अलग-अलगजगह अलग-अलगअपेक्षासे'अरिहन्त' शब्द का प्रयोग हुआहै। कहीं एकांत तीर्थंकर की अपेक्षासेहीअरिहन्त शब्द प्रयोग हुआ है तो कहीं समुच्चय केवली के लिये भी प्रयोग हुआ है। . इसी तरह "जिन" शब्द का अर्थ भी रागद्वेष को जीतने वाले अर्थात् केवली होता है / उसका भी प्रयोग "लोगस्स" में सिर्फ तीर्थंकरों के लिये भी हुआ है और अन्यत्र अवधिज्ञानी, मनःपर्यव ज्ञानी और विभंगज्ञानी को भी जिन कहा गया है। अत: शब्दार्थ की अपेक्षा से "अरिहंत" और "जिन" शब्द से केवली और तीर्थंकर दोनों को ग्रहण किया जा सकता है इसमें कोई आपत्ति नहीं है। किन्तु जहाँ शास्त्रकार एकान्त तीर्थंकर की अपेक्षा से अरिहंत या जिन शब्द का प्रयोग करे वहाँ पर अन्य केवली आदि को भी मान लेना उचित नहीं होता है। यथा- अरिहंतों के जन्मने पर, दीक्षा के समय और केवल ज्ञान के समय लोक में प्रकाश होता है वहाँ अरिहंत शब्द केवल तीर्थंकर के लिए ही है, यदि वहाँ केवली भी ले लेंगे तो अनुचित होगा। ठीक उसी तरह नवकार मंत्र में भी तीर्थंकर की ही अपेक्षा है / क्यों कि सिद्धों से पहले स्थान देने में जो हेतु है वह तीर्थ प्रणेता उपकारी तीर्थंकर के लिये ही उपयुक्त होता है / जैन सिद्धांत बोल संग्रह भाग-७ में भी इस विषय में प्रश्नोत्तर देकर यही समझाया है कि तीर्थंकरो को उपकार की मुख्यता से प्रथम स्थान दिया है / जब कि "णमोत्थुण" में गुण कीर्तन की मुख्यता से पहले सिद्धों का, फिर अरिहंतों का गुण कीर्तन किया जाता है। अत: अरिहंत शब्द से शब्दार्थ की अपेक्षा केवली अर्थ भी होता है तो भी नवकार मंत्र, लोगस्स और णमोत्थुणं आदि पाठों में अरिहंत शब्द मात्र तीर्थंकर की अपेक्षा ही है इसमें किंचित भी सन्देह को स्थान नहीं है / ठाणांग सूत्र में भी अनेक जगह शास्त्रकार ने एकान्त तीर्थंकर की अपेक्षा ही अरिहंत शब्द का प्रयोग किया है। अरिहंत शब्द के केवली अर्थ मान्य होते हुए भी सर्वत्र अरिहंत शब्द में केवली ग्रहण करना आगम आशय से विपरीत होगा। 52
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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