________________ आगम निबंधमाला पार करते हैं, पृथ्वी की गति से नहीं। - इसलिये यह स्पष्ट सत्य है कि पृथ्वी स्थिर है, भ्रमणशील नहीं है। सूर्य आदि ज्योतिष मंडल भ्रमणशील है। यह सम्पूर्ण ज्योतिष मंड़ल समभूमि से 790 योजन ऊपर जाने के बाद 900 योजन तक में कुल 110 योजन जाड़े क्षेत्र में एवं हजारों योजन लंबे चौड़े क्षेत्र में है। ध्रुव तारा क्या है ? :-भूमि से उपरोक्त उँचाई पर रहे हुए ये सूर्य आदि सदा भ्रमण करते रहते हैं / एक ध्रुव केन्द्र के परिक्रमा लगाते रहते हैं। वह ध्रुव केन्द्र मेरु पर्वत है, जो 99000 योजन उँचा है / उसकी चूलिका ही हमें ध्रुव तारा रूप दिखती है। मेरु भी स्थिर भूमि का ही एक अंश है। अतः ध्रुव तारा दिखने वाला व माना जाने वाला वह तारा नहीं किन्तु ध्रुव केन्द्र रूप मेरु पर्वत का चोटी स्थल है। जो वेडूर्य मणिमय होने से चमकते हुए नजर आता है। वह हमारे से (भरत क्षेत्र के मध्य से 49886 योजन दूर और समभूमि से 99000 योजन ऊँचा है। माइल की अपेक्षा 80 करोड़ माइल से अधिक ऊँचा और चालीस करोड़ माइल दूर है। सप्तर्षि मंड़ल इसके अत्यन्त निकट परिक्रमा लगाते हुए दिखता है। परिक्रमा सदा स्थिर वस्तु के लगाई जाती है। मेरु स्थिर केन्द्र है उसी के ही सम्पूर्ण ज्योतिष मंडल परिक्रमा लगाता है / सूर्य पृथ्वी आदि को गतिमान मानकर भी वैज्ञानिक उसे परिक्रमा केन्द्र भी मानते हैं यह भी एक व्यापक भ्रम वैज्ञानिकों के मुख्य सिद्धांत और उसकी विचारणा :- वैज्ञानिक लोग सूर्य को आग का गोला मानते हैं, चन्द्र को पृथ्वी का टुकड़ा मानते हैं, चन्द्र पृथ्वी के चक्कर लगाता है, पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है, सूर्य किसी अन्य सौर्य मंडल के चक्कर लगाता है / पृथ्वी अपनी धुरी पर भी 1000 माइल प्रति घंटा की चाल से घूमती है। इस प्रकार सूर्य को भी चक्कर काटने वाला बताते हैं / पृथ्वी तथा चंद्र को तीन तीन प्रकार की गतियों से गतिमान कल्पित करते हैं, यथा- पृथ्वी (1) अपनी धूरी पर घूमती है (2) सूर्य के चक्कर लगाती है और (3) सूर्य किसी सौर्यमंडल के चक्कर लगाता है / 48