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________________ आगम निबंधमाला चलने वाली मानते हैं / इस चाल से वह अपनी धुरी पर फिरती रहती है साथ ही दुसरी गति से वह अपना स्थान छोड़ कर पूर्णतः सूर्य के परिक्रमा भी लगाती है। ट्रेन एवं पक्षी का उदाहरण :- चलती हुई रेल(ट्रेन)में जैसे पृथ्वी वृक्ष चलते दिखते हैं वह भ्रम है। वैसे ही सूर्य आदि हमें चलते हुए दिखते हैं यह भी भ्रम है ऐसा वैज्ञानिक मानते हैं। किन्तु जब ट्रेन चलती है तब उसके भीतर तो व्यक्ति चल फिर सकता है, गेंद खेल सकता है किन्तु उस ट्रेन के बाहर या ऊपर कोई कूद कर खेल नहीं सकता या गेंद से नहीं खेल सकता है। इसी प्रकार यदि पृथ्वी चलन स्वभाव वाली होती और 1000 माइल प्रति घंटा चलती होती तो इसके ऊपर आकाश में पक्षी उड़कर पुनः अपने स्थान पर नहीं बैठ सकते हैं। क्यों कि पृथ्वी जिस दिशा में 1000 माइल की गति से चल रही है तो उससे विपरीत दिशा में दो माइल आकाश में एक घंटा चलकर पक्षी पुनः अपने स्थान पर दूसरे घंटे में नहीं पहुँच सकता है। क्यों कि पृथ्वी 1000 माइल आगे चली जायेगी। जब कि पक्षी अपने स्थान पर पुनः आते जाते देखे जाते हैं। इस पृथ्वी पर मनुष्य कूदते हैं, गेंद, रिंग खेलते हैं। इसमें कोई दिक्कत नहीं आती है। किन्तु ट्रेन की छत पर बैठकर कोई भी 6 इंच गेंद को कूदाते हुए सफल नहीं हो सकता है और ट्रेन के अंदर अपनी इच्छा सफल कर सकता है इससे स्पष्ट है कि ट्रेन का बाहरी वायुमंडल उसके साथ नहीं चलता है। उसी प्रकार पृथ्वी का बाह्य आकाशीय वायुमंडल साथ नहीं चल सकता है। वायुमंडल :- वायुमंडल साथ चलने की बात भी कल्पित एवं पूर्ण सत्य नहीं है। जिस प्रकार ट्रेन का भीतरी वायुमंडल साथ चलना संभव है किन्तु बाह्य वायुमंडल साथ नहीं चलता है। उसी प्रकार पृथ्वी के बाह्य विभाग का वायु मंडल साथ चलना कहना अप्रमाणिक मनगडंत कथन है एवं असंभव है। वह केवल अपने आग्रह का प्रकटीकरण मात्र है। वास्तव में तो पृथ्वी स्थिर है इसलिये उसका सारा बाह्य वातावरण उसके साथ है। पक्षी आदि का निराबाध गमन भी इसी कारण हो सकता है। वायुयान भी अपनी गति से ही मंजिल 47
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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