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________________ आगम निबंधमाला गोल एवं अति विस्तार वाली मानते हैं और वैज्ञानिक पृथ्वी को सीमित एवं गेंद के समान गोल बता रहे हैं तो क्या उन धर्म शास्त्र प्रणेताओं को सब को मूर्ख कहा जायेगा? नहीं। ऐसा कथन करना विवेकपूर्ण नहीं है। अतः इस दृष्टि भ्रम, चिंतन भ्रम को भ्रम शब्द से ही कहा जाना उपयुक्त है / सार-यह हमारी पृथ्वी अत्यंत विशाल अरबों खरबों असंख्य माइल की लम्बी चौड़ी गोल प्लेट के आकार से है। मानव एवं वैज्ञानिकों के पास साधन शक्ति अत्यल्प है। अतः उनको प्राप्त और ज्ञात क्षेत्र जो है वह पृथ्वी का अति अल्पतम क्षेत्र है और चक्षु सीमा भ्रम से ये पृथ्वी को आकार से गेंद जैसी गोल देख व मान रहे हैं। पहाड़ों से एवं समुद्री जलों से बाधित एवं अति दूरस्थ होने से वे जैनागमोक्त स्थलों को देख पाने एवं वहाँ पहुँचने में अक्षम है। निबंध-१२ ज्योतिषमंडल के प्रति वैज्ञानिक एवं आगम दृष्टि ... जैन सिद्धान्तानुसार पृथ्वी प्लेट के आकार गोल असंख्य योजन रूप है और वह स्थिर है। प्राणी जगत इस पर भ्रमण करते हैं यान वाहन इस पर भ्रमण करते हैं एवं इस भूमि के ऊपर ऊँचे आकाश में ज्योतिष मंडल, सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारे स्वाभाविक भ्रमण करते हैं एवं यान विमान मानविक दैविक शक्ति से गमन करते हैं। पक्षी आदि तिर्यंच योनिक जीव भी स्वभाव से आकाश में गमनागमन करते हैं / ज्योतिष मंडल के बीच में भी उत्तर दिशा में दिखाई देने वाला लोक मान्य ध्रुव तारा सदा वहीं स्थिर रहता है अर्थात् मनुष्यों एवं वैज्ञानिकों को वह सदा सर्वदा एक ही स्थल पर दिखता है। हजारों वर्षों से पूर्व भी वहीं दिखता था और हजारों वर्ष बाद भी उसी एक निश्चित स्थान पर दिखता रहेगा। गोल और घूमने वाली पृथ्वी :- वैज्ञानिक लोग पृथ्वी को गोल गेंद के आकार मान कर भी उसे एक केन्द्र बिन्दु पर सदा काल घूमन वाली मानते हैं और सूर्य को स्थिर मानते हैं। एवं सूर्य का चलते हुए दिखना भ्रमपूर्ण मानते हैं / पृथ्वी को भी 1000 माइल प्रति घंटा / 46 /
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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