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________________ आगम निबंधमाला एक वृद्ध मंद दृष्टि वाला खड़ा हो तो वह चौतरफ एक माइल के बाद ही पृथ्वी का अंत देख लेगा। इस प्रकार यह हमारी चर्म चक्षुओं का ध्रुव स्वभाव है कि वह अपने दृष्टि सीमा से बड़ी वस्तु को चौतरफ गोल देख कर समाप्त कर लेती है। इस भ्रम के वशीभूत होकर आज के मानव को पृथ्वी का अंत दिखता है और वह गेंद जैसी गोल पृथ्वी मानने पर उतारु हो जाता है. यही चर्म चक्ष का भ्रम कहा गया है। अतः वैज्ञानिकों की खोज का मूल सिद्धांत भ्रम पूर्ण होने से वे आगे अधिक सफल होकर भूभाग का पता नहीं लगा सकते हैं। क्योंकि पहले लक्ष्य बिन्दु का सिद्धांत सही हो तो ही उसकी ओर गमन सही गति को प्राप्त कर सकता है। लक्ष्य बिन्दु का सही सिद्धांत स्वीकार कर लेने पर भी यदि सामर्थ्य का अभाव है तो भी सफल गमन नहीं हो सकता है / यथा किसी की चलने की शक्ति का सामर्थ्य दिन भर में दो मील चलने का है तो वह एक लाख माइल क्षेत्र पैदल जाने की हिम्मत सही मार्ग जानते हुए भी नहीं कर सकता है। और कोई ज्वरं रोग से व्याप्त है, उस ज्वर से उसका सामर्थ्य अवरुद्ध है तो वह जानते देखते क्षेत्र में भी 5-15 कदम की मंजिल भी पार नहीं कर सकता। __इसी कारण वैज्ञानिक लोग मूल मान्यता के भ्रम से एवं पूर्ण सामर्थ्य के अभाव से जैन सिद्धांत कथित इन क्षेत्रों-स्थलों को नहीं पा सकते हैं / एवं जैन सिद्धांतों के अनुसार सही जानने मानने वाले भी सामर्थ्य के अभाव में नहीं जा सकते / यदि किसी को तप संयम या जप मंत्र से कोई अलौकिक शक्ति उत्पन्न हो तो वह जा सकता है अथवा देव स्मरण कर उसे बुलाकर उसके सहयोग से इन दूरस्थ, अति दूरस्थ स्थलों पर भी मानव क्षणभर में जा सकता है। प्रश्न-क्या वैज्ञानिक लोग इतने मूर्ख माने जा सकते है कि ऐसे भ्रम को भी नहीं समझ सकते? उत्तर- बड़े विद्वानों के भी मंतव्य भिन्न भिन्न और विपरीत हो जाते हैं। उससे वे विद्वान सभी मूर्ख नहीं कहे जा सकते। यह अपनी-अपनी चिंतनदृष्टि होती है। आज अनेक धर्मशास्त्र पृथ्वी को प्लेट के समान 45
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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