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________________ आगम निबंधमाला समान चपटी गोल है। न कि गेंद के समान / वैज्ञानिक लोगों ने गेंद के समान गोल होने की कल्पना कर रखी है। जो कि चर्म चक्ष के स्वभाव के कारण होने वाला एक भ्रम मात्र है।तथा वर्तमान ज्ञात दुनियावी पृथ्वी भी सीधी सपाट तो नहीं है अर्थात् ऊँचे-नीचे, सम-विषम, पर्वत टेकरे आदि रूप है, कई विशिष्ट चढाव-उतार भी है / किंतु परिपूर्ण गेंद के समान मान लेना भ्रम युक्त है / वैज्ञानिक मानष की स्थिति- वैज्ञानिक लोगों के मानने का या खोजने का अभी कोई अंत नहीं हुआ है अर्थात् उन्हें भ्रमण करते हुए और भी पृथ्वी का हिस्सा मिल जाय तो वे उसे मान्य कर सकते हैं। उत्तर दिशा का अंत लेने का ये वैज्ञानिक लोग परिश्रम करना भी मूर्खता भरा प्रयास मानते है अर्थात् उत्तरी दिशा में इन्हें पहाड़ और बर्फ से युक्त विकट मार्ग आगे जाने में अवरोधक होता है और शेष तीन दिशाओं में समुद्री जल विभाग ही आगे जाने में हताशा या निराशा के भावों को उत्पन्न कर देता है। अतः वैज्ञानिक अपनी कल्पित 24000 माइल वाली पृथ्वी के घेरे में या उसके अगल-बगल में ही परिक्रमा करते हैं। क्यों कि लाखों करोड़ों माइल की दूरियाँ पैदल या वायुयान, विमान राकेट आदि से कैसे पार की जा सकती है ? इसी कारण उक्त निर्दिष्ट लाखों करोड़ों माइल दूरस्थ तीर्थ आदि आगमिक स्थलो का पता लगाना या पाना वैज्ञानिको के लिये अत्यंत कठिन हो गया है। इसलिये उन उक्त शाश्वत स्थानों के दक्षिण भरत खंड़ में होते हुए भी हमारे लिये उन स्थानों का गमनागमन अवरुद्ध है। क्यों कि जितनी(५-१० योजन) ज्ञात पृथ्वी वर्तमान दुनिया है, उससे सैकड़ों गुणा क्षेत्र आगे जाने पर ही ये उक्त तीर्थ आदि शाश्वत स्थान आ सकते हैं। परिणाम सार :-इस प्रकार हमारा यह भरत क्षेत्र भी इतना विशाल है कि इसके एक खंड़ में जिसमें कि हम रहते हैं, उसका भी पार हम नहीं पा सकते, तो एक लाख योजन के जम्बूद्वीप अथवा अन्य द्वीप समुद्रों के पार पाने की बात ही नहीं हो सकती / कारण कि ज्ञात दुनिया का क्षेत्र और अज्ञात भरत क्षेत्र में भी कई गुणा अंतर है। तब 43 |
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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