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________________ आगम निबंधमाला गमनशक्ति से अत्यधिक हो तो भी पहुँचा नहीं जा सकता है। सम्भवतः तीन तीर्थ तो जलबाधकता से अगम्य हो जाने की स्थिति में है। इसके अतिरिक्त ये उपरोक्त सभी स्थान हमारे इस निवास क्षेत्र से अति दूरस्थ है। हमारी वर्तमान दुनियाँ आगमिक विनीता-अयोध्या, वाराणसी, हस्तिनापुर आदि के पास की भूमि है। अतः यह प्रथम खंड़ का मध्य स्थानीय भूमि भाग है जो आगमिक दृष्टि से 3-4 योजन प्रमाण ही है। इस स्थान से शाश्वत योजन की अपेक्षा-मागध तीर्थ एवं प्रभास तीर्थ क्रमश:पूर्व और पश्चिम में 4874 योजन है। वरदाम तीर्थ दक्षिण में 114 योजन है। दोनों शाश्वत नदियों का एक निकटतम हिस्सा 1000 योजन है। गुफाएँ 1250 योजन है / एक योजन अमुक अपेक्षा से 8000 माइल का स्वीकारा गया है। इन योजनों के माइल एवं कि.मी. इस प्रकार है। नाम / माइल कि.मी. मागध तीर्थ 3,89,12,000 5,84,88,000 वरदाम तीर्थ 9,12,000 13,68,000 प्रभास तीर्थ 3,89,12,000 / 5,84,88,000 | गंगा सिंधु नदी 80,00,000 1,20,00,000 दोनों गुफा 1,00,00,000 1,50,00,000 वर्तमान ज्ञात दुनिया का क्षेत्रावबोध- हमारी वर्तमान ज्ञात भ्रमण संचरण शील दुनिया वैज्ञानिकों द्वारा 24,000 माइल साधिक की परिधि वाली मानी गई है। जो आगमिक योजन की अपेक्षा कुल अधिकतम 3 योजन परिमाण मात्र की है / अथवा जितने भी माइल की आँकी जा रही हो उस माइल में 8000 का भाग देने पर आगमिक क्षेत्रीय योजन निकल आवेंगे। अतः 3-4 या 5-10 योजन में घूम फिरकर, खोजकर के ही संतुष्ट रहने वाले वैज्ञानिक लोग 114 या 1000 और 1250 योजन की कल्पना एवं पुरुषार्थ के लिये तत्पर नहीं हो सकते / साधन एवं खोजने की शक्ति भी उतनी नहीं है / यह पृथ्वी वास्तव में चन्द्र के समान या प्लेट के 42
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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