________________ आगम निबंधमाला डॉक्दरों और इलाजों में अंतिम जीवन को खराब नहीं करना चाहिये। अनशन विधि विवेक :-इस आठवें अध्ययन के छठे, सातवें और आठवें तीनों उद्देशक में ऐसा निर्देश किया गया है कि जब शरीर अपने धार्मिक एवं व्यावहारिक आवश्यक कार्यों में साथ न दे, तब साधक संलेखना प्रारंभ कर क्रमशः आहार घटावे, तपस्या का अभ्यास बढावे और कषायों को कृश, मंद, मंदतम करता जावे, ऐसा करते हुए जब कभी भी मृत्यु का, जीवन समाप्ति का समय अत्यंत निकट लगें, तब पूर्ण रूपेण आजीवन अनशन स्वीकार कर लेना चाहिये / / अचित, निर्जीव और हरीघास या वनस्पति से रहित, शांतएकांत स्थान की प्रतिलेखना करनी चाहिये / सूखे घास का बिछौना करना चाहिये / लघुनीत, बडीनीत(मल-मूत्र) त्यागने या परठने की भूमि को देख लेना चाहिये / क्यों कि संथारे में अचित, निर्दोष जीव रहित भूमि में ही मल-मूत्र का विसर्जन किया जाता है / धैर्य से भूख, प्यास, कष्ट, उपसर्ग सहन करना होता है और मनुष्य या देव संबंधी आगामी सुखों की चाहना, आकांक्षा नहीं करनी होती है अर्थात् किसी प्रकार का नियाणा(निदान) नहीं करना चाहिये / निबंध-१० क्षमापना भाव अंतर हृदय का आवश्यक बृहत्कल्प सूत्र, उद्दे.४, सूत्र-३० तथा उद्दे-१, सूत्र-३४ / व्यवहार सूत्र उद्दे.-७, सूत्र-११, 12 ] क्षमापना का धार्मिक जीवन में इतना अधिक महत्व है कि यदि किसी के साथ क्षमापना भाव न आए और नाराजी भाव लंबे समय तक चालु रहे, ऐसे भावों में काल धर्म प्राप्त हो जाय तो वह विराधक हो जाता है। __यह क्षमापना, द्रव्य एवं भाव के भेद से दो प्रकार का है-(१) द्रव्य से- यदि किसी के प्रति नाराजगी का भाव या रोषभाव हो तो उसे प्रत्यक्ष में कहना कि- 'मैं आपको क्षमा करता हूँ और आपके प्रति प्रसन्न-भाव धारण करता हूँ।' यदि कोई व्यक्ति किसी भी भूल के कारण रूष्ट हो तो उससे कहना कि- 'मेरी गलती हुई आप क्षमा / 38