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________________ आगम निबंधमाला तीन मनोरथ चिंतन एवं संस्कार :-ठाणांगसूत्र ठाणा-३ के अनुसार प्रत्येक आत्मलक्षी साधु-साध्वी और श्रावक-श्राविकाओं को प्रतिदिन तीन मनोरथ का चिंतन करना होता है, जो कि आत्मा के लिये महान निर्जरा महान मुक्ति का हेतु बताया गया है / तदनुसार गृहस्थ और श्रमण दोनों प्रकार के साधकों को सदा अपनी चाहना, मनोगत संकल्प और अंतरंग आत्मपुकार से अपने को पूर्ण अभ्यस्त और संस्कारित करते रहना होता है कि जब कभी आयुष्य की समाप्ति और मरण का अवसर आने का किंचित् भी संकेत या अनुभव हो जाय तो मैं अविलंब निर्णय के साथ, संलेखना संथारा और आजीवन अनशन स्वीकार कर, स्वयं इच्छापूर्वक कषाय भावों से अलग हट कर, आर्तध्यान रौद्रध्यान रूप अशुभ ध्यानों से रहित होकर, मात्र धर्मध्यान के संकल्प और प्रवृत्ति में अपने उस अवशेष जीवन को लगा दूँ और अंतिम श्वास तक उन्हीं धर्ममय परिणामों में, आगम आज्ञाओं के अनुसार ही आत्मा को भावित करता हुआ पंडितमरण को प्राप्त करूँ। इस प्रकार के मनोरथ का चिंतन करते हुए साधक के संस्कार इतने दृढ बन जाते हैं कि स्वप्न में भी मृत्यु सामने दिखे तो वह तत्काल आजीवन अनशन का प्रत्याख्यान करने से वंचित नहीं रहता है / इस प्रकार प्रत्येक साधक का परम कर्तव्य है कि ठाणांग सूत्र कथित मनोरथ से अपने को संस्कारित, भावित करते रहना चाहिये / दूसरा विवेक कर्तव्य यह है कि जब कभी भी अचानक मृत्यु निकट दिखे, शरीर कितना भी सशक्त हो, आजीवन अनशन या सागारी अनशन करने की सावधानी और संस्कारों को तरोताजा रखना चाहिये / तीसरा विवेक कर्तव्य यह है कि जब शरीर की क्षमता क्षीण हो जाय, किसी भी प्रकार के कार्य में शरीर साथ न दे सके, या अनेक रोगों से आक्रांत हो जाय अथवा वृद्धावस्था से घिर जाय, ऐसे समय में साधक को जीवन की आशावादिता छोडकर हिम्मत के साथ आत्म क्षमता को स्थिर, केन्द्रित करके आध्यात्म ज्ञान के संस्कारों को उपस्थित करके, आजीवन अनशन स्वीकार करने का निर्णय कर लेना चाहिये / संलेखना प्रारंभ कर, तप का अभ्यास बढाकर संथारा स्वीकार करना चाहिये / जीवन के अंत तक जीवन की आशा से
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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