________________ आगम निबंधमाला झोंपडियों, मुसाफिरखानों अर्थात् धर्मशालाओं, बगीचों के मकानों में कई बार ठहरे थे / कभी ग्रामों में नगरों में भी भगवान ठहरे थे / कभी स्मशान, खण्डहर और वृक्ष के नीचे भी ठहरे थे / इस प्रकार भगवान की शय्याएँ अर्थात् निवास करने के स्थान यहाँ शास्त्र में बताये गये हैं। भगवान के चातुर्मास का कुछ वर्णन भगवती सूत्र में है तदनुसार भी नगरी के अंदर भगवान ने साधना काल में चातुर्मास किये थे। अत: जो लोग यह कहते हैं कि “पहले जैन श्रमण जंगलों में और नगरों के बाहर ठहरते थे, फिर धीरे धीरे ढिलाई आ जाने से गाँवों, नगरों के अंदर ठहरने लग गये हैं " यह आगम के अपूर्ण ज्ञान से अपने को पंडित मानने की भ्रमणा का परिणाम है, आगम ऐस एकांत प्ररूपणा वाले नहीं हैं। निबंध-९ पंडित मरण के तीन प्रकार (1) भक्तप्रत्याख्यान पंडित मरण :-किसी भी प्रकार के अनुभव ज्ञान या अनुमान ज्ञान से जब यह आभास हो जाय, समझ में आ जाय कि अब जीवन का समय अधिक नहीं है, अंतिम समय निकट आ पहुँचा है, तब आहार पानी का त्याग करना, शारीरिक क्रियाओं के अतिरिक्त समस्त प्रवृत्तियों का त्याग करना, श्रमणोपासक को समस्त सावध कार्यों का त्याग करना होता है / समस्त जीवों के प्रति वैर विरोधभाव को दूर कर क्षमा भाव, समभाव उपस्थित करना होता है / आत्म परिणामों को समस्त जीवों के प्रति समझपूर्वक पूर्ण .पवित्र बनाना होता है / जीवन में हुए अपने विशिष्ट दोषों का, गलत कार्यों का और व्रतभंग के प्रसंगो का स्मरण कर, उनकी आलोचना प्रायश्चित करना होता है / दोषों को संख्या अधिक हो तो पुनः नये रूप से व्रतारोपण करना होता है अर्थात् पुनः महाव्रत या व्रतों के पच्चक्खाण का उच्चारण कर स्वीकार करना होता है / फिर शरीर के प्रति ममत्व छोड कर, देह और आत्मा की भिन्नता का चिंतन सदा उपस्थित रखते हुए धर्म ध्यान के चिंतन में ही लगे रहना