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________________ आगम निबंधमाला भगवान अपने महान कर्मों की निर्जरा के लिये, अपनी क्षमता को देखकर ही अनार्य भूमि में विचरण करने गये थे / सामान्य रूप से साधुओं को अकारण ऐसे अनार्य क्षेत्रों में जाने का आगम में निषेध किया गया है / क्यों कि सामान्य तया कोई भी श्रमण इतना धैर्य रखने में समर्थ नहीं हो सकता: जिससे वह अपनी संयम समाधि में नहीं रह पाए, ऐसी संभावना रहती है। प्रश्न-११ : भगवान के कानों में कीले ठोके गये आदि क्या इस अध्ययन में है ? उत्तर- कानों मे कीले, पाँवों मे खीर पकाना, चंडकोशिक सर्प, तेरह अभिग्रह, संगमदेव आदि विविध अनेक उपसर्ग कथा ग्रंथों में है / उन्हीं के आधार से प्रचलित है / ये सब वर्णन इस अध्ययन में नहीं है और अन्य आगमों में भी नहीं है / उन घटनाओं का विस्तार तीर्थंकर चारित्र से जानना चाहिये / वे घटनाएँ आगम के किसी भी तत्त्व से बाधक नहीं हों और अनावश्यक अतिशयोक्ति वाली न हो तो उन्हें स्वीकार करने में या मानने में कोई आपत्ति नहीं समझनी चाहिये। प्रश्न-१२ : भगवान साधना काल में वस्त्र रहित होने से क्या सदा गाँव या नगर आदि के बाहर दूर ही ठहरते थे ? उत्तर- भगवान महावीर स्वामी. छद्मस्थ काल में या केवल ज्ञान प्राप्ति के बाद तथा भगवान के अन्य श्रमण नगर या ग्राम के बाहर ही रहे, ऐसा एकांत नियम नहीं समझना चाहिये / .. भगवान साधना काल में भी ग्राम नगर के मध्य एवं बाहर दोनों ही स्थानों में ठहरते थे और केवलज्ञान के बाद भी साधुओं की संख्या अधिक होने से बाहर बगीचों में ठहरते थे / फिर भी अंतिम चातुर्मास नगर के भीतर किया था, कई बार बस्ती के निकट ठहरते थे और कभी उपनगरों में भी ठहरते थे। एक बार भगवान सकडाल श्रमणोपासक की कुंभकारशाला में ठहरे थे / __इस अध्ययन के दूसरे उद्देशे की गाथा दूसरी और तीसरी क अनसार साधना काल में भगवान-खले घर, सभाभवन, प्याऊ, दुकानों, बढई-लुहार की कर्मशालाओं, घास पराल के पुंज युक्त मकानो, 34
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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