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________________ आमम निबंधमाला परीषह सहन करते थे। किंतु हाथों को छाती के पास बंधे रखकर सर्दी से कभी ठिठुरते नहीं थे / (7) भगवान जिन मकानों में ठहरते थे, रात्रि निवास करते थे; वहाँ सर्प, चूहे, चमगादड, मच्छर आदि पशु पक्षियों के कष्टदायक उपसर्ग होते थे। परदारसेवी घुमक्कड लोग, कोतवाल, पहरेदार, ग्रामरक्षक तथा ग्रामीणजनों के द्वारा, स्त्रियों के द्वारा अकेले और निर्वस्त्र भगवान को अनेक प्रकार के उपसर्ग आते थे / देव संबंधी उपसर्ग भी आते थे; इन सभी अनुकूल और प्रतिकूल कष्ट उपसर्गों को भगवान रति-अरति (हर्ष-शोक)से मुक्त होकर समभाव से सहन करते हुए आत्म रमणता में लीन रहते थे / (8) भगवान कुछ समय अनार्य क्षेत्र में गये थे / वहाँ क्षेत्रीय और व्यक्तीय अनेक भीषण कष्टों को भगवान ने सहन किये / यथा- वहाँ आहार भी अत्यंत रूक्ष मिलता था। वहाँ के लोग भगवान के शरीर को नखों से लूषित कर देते थे / कुत्तों से रक्षा करना तो दूर किंतु छू छू करके कुत्तों को काटने की प्रेरणा करते थे / अन्य संन्यासी लाठी, दंड रखकर चलते थे तो भी उन्हें कुत्ते काट लेते थे। ऐसे क्रूर कुत्तों के उपद्रव युक्त क्षेत्रों में भी भगवान कुत्तों से किसी प्रकार का अपना बचाव किये बिना अपनी मस्ती से चलते थे / शरीर का ममत्व छोडकर शरीर में कांटे के समान खटकने वाले ऐसे घोर कष्टों को संग्राम के अग्रभाग में गये हाथी के समान भगवान सहन करते थे। (9) अनार्य क्षेत्र में कई बार रात्रि निवास के लिये गाँव भी नहीं मिलते और कभी तो कोई गाँव के बाहर से ही भगवान को हकाल देते थेचले जाओ इस गाँव में आने की जरूरत नहीं हैं, अन्यत्र कहीं भी चले जाओ। (10) कई बार वहाँ भगवान को डंडे, मुष्टि, भाले आदि से मारा गया। कभी मांस काट लिया गया, कभी चमडी को चिमटी द्वारा उपाड लिया गया। कोई पीटते, कोई धूल उछालते, कोई खडे रहे भगवान को पीछे से पकड कर ऊँचे उठाकर पटक देते / कोई बैठे हुए भगवान को धक्का मारकर आसन से अलग दूर कर देते / इन सभी कष्टों को भगवान ने अनार्य भूमि में निश्चल भावों से सहन किये / वास्तव में / 33 /
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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