________________ आगम निबंधमाला साधिक अनेक छोटे त्रस प्राणियों द्वारा हुए त्रास को सहन किया। दीक्षा ग्रहण के पूर्व भगवान के शरीर पर लगाये गये सुगंधी द्रव्यों की सुवास के कारण ये जन्तु आकर भगवान के शरीर पर घूमते थे और कोई रुष्ट होकर काट लेते थे। भगवान उन जीवों को हटाने का संकल्प भी नहीं करते थे / (2) भगवान वस्त्र रहित(नग्न) रहते थे और चलते समय आँखों को एक क्षेत्र अवग्रह (पुरुष प्रमाण) में स्थिर, एकाग्र रखकर चलते थे / ऐसी चाल और निर्वस्त्रता के कारण कुतूहल प्रकृति के बालक भगवान के पीछे हो जाते या अन्य बालकों को बुला-बुला कर दिखाते कि- अरे ! यह क्या आया है ? भगवान उन बच्चों के कोलाहल को समभाव और अपनी ज्ञान की मस्ती से पार कर लेते थे / : (3) कई जगह भगवान के ठहरने के बाद वहाँ स्त्रियाँ भी आकर रह . जाती और वे कई प्रकार से अनुकूल परीषह रूप प्रवृत्तियाँ भी करती। भगवान बडे विवेक से उनकी उपेक्षा करके आत्म ध्यान में लीन बन जाते थे / (4) कभी भगवान अपने ध्यान मौन के कारण किसी के अभिवादन . (विनय-अनुनय)को स्वीकार नहीं करते थे / तब कोई पुण्यहीन लोग गुस्से में आकर भगवान को मारपीट(डंडों से) भी कर देते थे और लहुलुहाण भी कर देते थे। . (5) दुस्सह कष्ट होने पर भी उन्हें भगवान समभाव से पार कर लेते थे और कभी भगवान के विश्रांति स्थान में या उसके अत्यंत निकट सामने नृत्य, गीत, वाजिंत्र, दंडयुद्ध, मुष्टियुद्ध एवं परस्पर वार्तालाप आदि कार्यक्रम और प्रसंग उपस्थित हो जाते तो भगवान किसी भी प्रकार का शोक-हर्ष नहीं करते थे / उनको देखने सुनने की चाहना भी नहीं करते थे। (6) सर्दी के मौसम में जब लोग अग्नि तापते, वस्त्र कम्बलों का उपयोग करते, वैसी अति कष्टकारी हेमंत ऋतु में भगवान खुली शालाओं में ठहरकर भी निर्वस्त्र रहकर शीत को सहन करते.। उसमें भी कभी हाथ पसार कर-फैलाकर खडे होकर कायोत्सर्ग करते और कभी रात्रि में मकान से बाहर निकलकर खुल्ले में ध्यान कर शीत / 32 /