________________ आगम निबंधमाला कभी सेवन करते थे अर्थात् लोगो के खाने के बाद बचा खुचा तथा अन्य श्रमण भिक्षु जिसे लेना भी नहीं चाहे वैसा फेंकने योग्य आहार भी भगवान कभी ग्रहण कर संतोष करते थे अर्थात् वह आहार संयम के किसी नियम से अयोग्य नहीं होता किंतु मन को योग्य नहीं लग सकता और कभी शरीर को भी योग्य नहीं हो सकता, ऐसे आहार का प्रशस्त परिणामों से सेवन करते थे। ऐसे उच्च साधकों को अशाता वेदनीय का संयोग न होने से वह अमनोज्ञ आहार भी सही रूप में परिणत हो जाता है / ] (6) कभी भगवान बेला, तेला, चौला, पंचोला आदि तपस्याएँ करते थे; वे भी केवल कर्म निर्जरा हेतु करते थे / (7) कभी संस्कारित, कभी रूखासूखा, कभी ठंडा आहार ग्रहण करते थे। कभी पुराने उडद, कभी निस्वादु, कभी निस्सार- पौष्टिक तत्त्व रहित, ऐसे हल्की जाति के पदार्थों का आहार ग्रहण करते थे। यहाँ ठंडे आहार से टीकाकार श्री शीलांकाचार्यने 'दो तीन दिन के आहार' को ग्रहण करते थे, ऐसा भी अर्थ किया है। क्षेत्र, काल मौसम की अनुकूलता हो तो खाद्य पदार्थ अनेक दिन भी योग्य (खाने लायक) रह सकते हैं और गृहस्थ लोग विवेक से रखते भी हैं, खाते भी हैं / अत: किसी भी पदार्थ के बिगडने के लिये कोई समय का एकांतिक नियम नहीं कहना चाहिये / देरावासी लोगों ने ऐसे कई एकांतिक नियम खाद्य पदार्थों के लिये कल्पित करके उनका सिद्धांत कायम कर असत्प्ररूपणा ग्रंथों के नाम से शरु करी है, जो आगम वर्णनों की उपेक्षा करने वाली एवं पूर्व महापुरुषों की आशातना कराने वाली है / 22 अभक्ष्य की संख्या भी ऐसे ही अनेक दोषों से मिश्रित है / (8) भगवान स्थिर खडे रहकर या बैठकर ध्यान करते थे। जिसमें आत्म चिंतन के अतिरिक्त तत्त्वचिंतन या लोक स्वरूप चिंतन भी करते थे। प्रश्न- 10 : साधना काल में भगवान ने कौन कौन से परीषह . उपसर्ग सहन किये थे ? उत्तर- (1) संयम ग्रहण करने के अनंतर भगवान ने चार महीना