________________ आगम निबंधमाला (साडे पाँच महीना)साधना काल में कभी सयन आसन किया था? निद्रा ली थी ? उत्तर- कथाग्रंथों एवं श्रुतिपरंपरा में ऐसा कहा जाता है कि- "भगवान महावीर स्वामी ने साढे बारह वर्ष में सयनासन नहीं किया था और बिना सोये(प्रचला निद्रा की अपेक्षा भगवान को कुल मिलाकर अनेकों बार की जोड करने पर भी) मुहूर्त भर की निद्रा आई थी किंतु भगवान ने संकल्प पूर्वक सोना या निद्रा लेना नहीं किया था / " आचारांग के इस अध्ययन के परिशीलन से यह ज्ञात होता है कि कथाग्रंथों आदि की ऐसी एकांतिक धारणा आगम सापेक्ष नहीं है / अर्थ भ्रम तथा भक्ति, अतिशयोक्ति से चल पडी है / इस अध्ययन के दूसरे उद्देशक की पाँचवीं गाथा में कहा गया है- णिई पि णो पगामाए सेवइ, भगवं उट्ठाए। जग्गावइ य अप्पाणं, इसिं साई आसि अपडिण्णे // 5 // भावार्थ- भगवान(प्रकाम) अत्यधिक निद्रा का सेवन नहीं करते थे। शीघ्र उठकर(सावधान होकर) आत्मा को जागृत कर लेते थे। लम्बे सोने के आग्रह बिना अर्थात् आवश्यक लगने पर थोडा सो जाते थे, लेट जाते थे। उठने पर भी निद्रा से पूर्ण मुक्ति पाने के लिये भगवान कोईक बार रात्रि में बाहर निकलकर थोडी देर चंक्रमण कर लेते थे अर्थात् भ्रमण कर लेते थे / (ऐसा गाथा-६ में कहा गया है)। तात्पर्य यह है कि श्रमण भगवान महावीर साधना काल में अधिकतम द्रव्य से और भाव से जागृत रहते थे, अत्यधिक निद्रा नहीं लेते थे और लम्बे समय के संकल्प से नहीं सोते थे अर्थात् कुछ निद्रा का सेवन भी कर लेते थे और कुछ सो भी जाते थे / किंतु सामान्य मानव स्वभाव के अनुसार पाँच-सात घंटे पूर्ण सोना या निद्रा लेना आदि नहीं करते थे। शरीर स्वभाव से स्वत: कभी निद्रा आ जाती तो शीघ्र जागृत हो जाते एवं कभी विश्राम की आवश्यकता महसूस होती तो थोडा सा सयन भी कर लेते थे। इस प्रकार के स्पष्ट आगम वर्णन के होने से कथा ग्रंथों की अतिशयोक्ति युक्त कथन के आग्रह म नहीं पडना चाहिये। प्रश्न-८ : इसी अध्ययन के चौथे उद्देशक में कहा है कि / 29 /