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________________ आगम निबंधमाला प्रमाणभूत मानना जरूरी नहीं है / वास्तव में संयम मर्यादा में गृहस्थ को वस्त्रादि दिये नहीं जाते / अनावश्यक हो तो वोसिरा दिये जाते हैं / भगवान ने अपने साधना जीवन काल में कोई भी संयम मर्यादा का भंग नहीं किया था / अत: भगवान ने आधा देवदूष्य वस्त्र ब्राह्मण को फाडकर दे दिया था, ऐसा कथन आगम से विपरीत है, कल्पित मात्र है / इस अध्ययन के मूल पाठ से ऐसा कोई अर्थ निकलता भी नहीं है / अतः ऐसी कथाओं की परंपराएँ ध्यान में आ जाने के बाद छोडनी चाहिये, सुधार लेनी चाहिये / प्रश्न-६ : संयम विधियों के पालन में छगस्थ काल में भगवान ने क्या ध्यान रखा था ? उत्तर- (1) भगवान छ काय के जीवों का पूर्ण ध्यान रखते हुए उनकी तनिक भी विराधना न हो, इस तरह प्रत्येक प्रवृत्ति करते थे / (2) एकाग्रचित्त से सामने मर्यादित(पुरुष प्रमाण) भूमि देखते हुए आजु-बाजु नहीं देखते हुए चलते थे / (3) स्त्रियों से संयुक्त स्थान में ठहरने का प्रसंग आ जाय तो भगवान अपने ब्रह्मचर्य व्रत में सावधान रहते थे / (4) गृहस्थ लोगों के साथ बैठकर बातचीत करना आदि अतिसंपर्क का त्याग करके ध्यान में लीन रहते थे / (5) रास्ते चलते कोई अभिवादन करे या कुछ, पूछे तो उसका कुछ भी उत्तर दिये बिना भगवान आगे बढ जाते थे। (6) संकल्पजा या असंकल्पजा किसी प्रकार की हिंसा नहीं करते, नहीं करवाते / (7) आधाकर्मी(औद्देशिक) आहार पानी, गृहस्थ का वस्त्र या पात्र ग्रहण नहीं करते और संखडी-बडे जीमणवार में भिक्षार्थ नहीं जाते थे। (8) आँखो की सफाई, शुद्धि भी नहीं करते और शरीर में खाज भी नहीं खुजलाते, निरोग होते हुए भी भगवान सदा भूख से कम ही खाते थे, कोई भी प्रकार की चिकित्सा नहीं लेते थे / (9) स्नान, मालिस, दंतमंजन, शरीर मर्दन, वमन विरेचन क्रिया आदि नहीं करते थे अर्थात् शरीर की शुश्रूषा से भगवान मुक्त रहते थे / (10) पशु, पक्षी, भिक्षाचरों को अंतराय न पडे, इसका पूर्ण पालन करते हुए ग्रामादि मे प्रवेश कर विशुद्ध भिक्षा ग्रहण करते थे एवं मंद गति से चलते थे। प्रश्न-७ : श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने 12 वर्ष साधिक | 28
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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