________________ आगम निबंधमाला निर्दोष संयम का पालन करने वाले साधकों को ६हों लेश्या में संयम रह सकता है / अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, विशिष्ट लब्धि आदि की उत्पत्ति तीन शुभ लेश्याओं में ही होती है / वैमानिक देवों में उत्पन्न होने वाले तिर्यंच मनुष्यों के शुभ लेश्या होती है, अशुभ लेश्याओं में मरने वाला वैमानिक देवों में नहीं जाता है / सातवाँ गुणस्थान भी तीन शुभ लेश्याओं में ही होता है / अत: प्रत्येक साधक को ये उपरोक्त लेश्याओं के लक्षणों को सही रूप में समझ कर अनुभव में ले लेना चाहिये / निबंध-८ भगवान महावीर स्वामी की संयम साधना - आचारांग सूत्र के नौवें अध्ययन का नाम 'उपधान श्रुत' है / इसमें भगवान महावीर स्वामी के छद्मस्थ अवस्था के संयम पर्याय में आचरित विविध साधनाओं एवं तप-उपसर्ग आदि का किंचित् संकलन और दिग्दर्शन है / पूरा अध्ययन गाथामय-पद्यमय है / इस अध्ययन में 4 उद्देशों में भगवान महावीर स्वामी का संयम जीवन वर्णन इस प्रकार है- प्रथम उद्देशक में- संयम ग्रहण के पूर्व का आचरण, संयम ग्रहण के बाद की साधनाएँ, साधना और धर्म संबंधी सिद्धांत, समिति गुप्ति के पालन की विधियाँ एवं देवदूष्य वस्त्र ग्रहण करने का और उसके व्युत्सर्जन-छोडने का वर्णन है / दूसरे उद्देशक में- संयम के विचरणकाल में निवास करने के मकानोंशय्याओं का, उनमें होने वाले कष्ट उपसर्गों का और भगवान की सहनशीलता का वर्णन है / तीसरे उद्देशक में- अनार्य क्षेत्र में विचरण का, अनार्य लोगों द्वारा दिये जाने वाले घोर रोमांचकारी उपसर्गों का और भगवान की शूरवीरता का वर्णन है। चौथे उद्देशक में- भगवान की अनशन, ऊणोदरी, रस परित्याग आदि तपस्याओं का, गोचरी की गवेषणा विधियों का, ध्यान करने का और अप्रमाद का अर्थात् प्रमाद (दोष सेवन) नहीं करने का वर्णन है / 25