________________ आगम निबंधमाला (1) कृष्ण लेश्या का लक्षण- पाँच आश्रवों में प्रवृत्त, अगुप्त, अविरत, तीव्र भावों से आरंभ में प्रवृत्त, निर्दय, क्रूर, अजितेन्द्रिय, ऐसे अपने परिणाम हों तो कृष्ण लेश्या समझना चाहिये। (2) नील लेश्या का लक्षण- ईर्ष्यालु, कदाग्रही, अज्ञानी, मायावी, निर्लज्ज, गद्ध, धूर्त, प्रमादी, रसलोलुप, सुखैशी, अविरत, क्षुद्र स्वभावी, ऐसे अपने परिणाम हों तो नील लेश्या समझना चाहिये। (3) कापोत लेश्या का लक्षण- वक्र, वक्राचरण बाला, कपटी, सरलता से रहित, दोषों को छिपाने वाला, मिथ्यादृष्टि, अनार्य, हंसोड़, दुष्टवादी, चोर, मत्सर-भाव वाला, ऐसे अपने परिणाम हो तो कापोत लेश्या समझना चाहिये। (4) तेजो लेश्या का लक्षण- नम्रवृत्ति, अचपल, माया रहित, कुतूहल रहित, विनय, दमितात्मा, समाधिवान, प्रियधर्मी, दृढ़धर्मी, ऐसे अपने परिणाम हों तो तेजोलेश्या समझना चाहिये। (5) पद्म लेश्या का लक्षण- क्रोध,मान,माया,लोभ अत्यंत अल्प हों, प्रशांत चित्त, दमितात्मा, तपस्वी, अत्यल्प भाषी, उपशांत, . जितेन्द्रिय, ऐसे अपने परिणाम हों तो पद्म लेश्या समझना चाहिये। . (6) शुक्ल लेश्या का लक्षण- आर्तरौद्र ध्यान को छोड़कर धर्म और शुक्लध्यान में लीन, प्रशांत चित्त, दमितात्मा, समितिवंत, गुप्तिवंत, उपशांत, जितेन्द्रिय, इन गुणों से युक्त, सराग हो या वीतराग, ऐसे अपने परिणाम हों तो शुक्ल लेश्या समझना चाहिये। इन परिणामों की अवस्थाओं का अनुशीलन कर तीन शुभ लेश्या के परिणामों में रहने का प्रयत्न करना चाहिये और 3 अशुभ लेश्याओं के परिणामों से यथाशक्य दूर रहना चाहिये / अशुभ लेश्या में अशुभ कर्म और अशुभ आयुष्य का बंध होता है तथा अशुभ लेश्या के परिणामों में संयम भाव ज्यादा समय टिकता नहीं है वह असंयम में परिणत हो जाता है / इसलिये तीन शुभ लेश्याओं का साधक जीवन में अत्यधिक महत्त्व है / संयम के मूलगुण या उत्तर गुण में दोष लगाने वाला साधक तीन अशुभ लेश्याओं के लक्षण में विद्यमान हो तो उसका संयम नष्ट हो जाता है वह तत्काल असंयम में चला जाता है। / 24