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________________ आगम निबंधमाला प्रश्न-३ : श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने दीक्षा कब और किस तरह ली थी? उत्तर- भगवान ने हेमंतऋतु के प्रारंभ में प्रव्रज्या ग्रहण करके विचरण किया था / - हेमंते, अहुणा पव्वइए रीयत्था // 1 // भगवान ने निष्क्रमण के पहले कुछ अधिक दो वर्ष सचित्त पानी पीने का त्याग कर दिया था, एकत्ववास में रहे अर्थात् स्त्रीसंग का त्याग किया था, शरीर की सार संभाल बंध कर दी थी अर्थात स्नान, मंजन आदि और शरीर संस्कार, विभूषा आदि का भी दो वर्ष साधिक त्याग किया था। यह प्रथम उद्देशक की ग्यारहवीं गाथा में वर्णित है / इसी सूत्र में आगे 24 वें भावना अध्ययन में भगवान की दीक्षा विधि का तथा अन्य भी बहुत वर्णन विस्तार से है / प्रश्न-४ : तीर्थंकर वस्त्र रखते हैं ? उसको उपयोग में लेते हैं ? उत्तर- तीर्थंकर दीक्षा ग्रहण करते समय इन्द्र द्वारा प्रदत्त एक देवदूष्य नामक वस्त्र ग्रहण करते हैं, रखते हैं / तीर्थंकरों का यह परम्परानुगत धर्म अथवा आचारकल्प होता है कि वे उस इन्द्रप्रदत्त वस्त्र को रखते हैं किंतु उसका उपयोग नहीं करते / श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने उस वस्त्र को एक वर्ष और एक महीने तक रखा था। फिर उसको वोसिरा दिया था, पूर्णतया छोड दिया था। उसे छोडने के बाद प्रभु अचेल रहे थे / यहाँ पर यह विशेष विचारणीय है कि भगवान के जीवन वर्णन में देवदूष्य के अतिरिक्त किसी भी उपकरण की चर्चा नहीं है / मुख वस्त्रिका और रजोहरण ये दोनों संयम जीवन के उपयोगी एवं अत्यंत आवश्यक उपकरण हैं / सभी गच्छत्यागी, वस्त्रत्यागी अचेल साधक भी जिनशासन में रहते हुए येदो उपकरण अवश्य रखते हैं। भगवान के विषय में आगम वर्णनों में मुखवस्त्रिका, रजोहरण रखने का वर्णन भी नहीं है और नहीं रखने रूप स्पष्ट निषेध भी कहीं नहीं है। इन दोनों उपकरणों के बिना भाषासमिति और ईर्यासमिति का सम्यक् पालन होना संभव नहीं है अपितु असंभव जैसा ही है। इस विचारणा के कारण आजकल के विचारक तीर्थंकरों के मुखवस्त्रिका रजोहरण दो उपकरण होना स्वीकार करने की प्रचारपत्रों से चर्चा करते हैं ।तीर्थंकर को स्वलिंग / 26 /
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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