________________ आगम निबंधमाला १६-असंसट्ठ चरए- अलिप्त हाथ, पात्र या चम्मच से आहार लेने का अभिग्रह करना / इसमें दाता और वस्तु का विवेक रखा जाता है जिससे कि पश्चात्कर्म दोष न लगे / १७-तज्जाय संसट्ट चरए- देय पदार्थ से लिप्त हाथ, पात्र या चम्मच द्वारा दिये जाने वाले आहार को लेने का अभिग्रह करना / १८-अण्णाय चरए- अज्ञात स्थान(जहाँ भिक्षु की प्रतीक्षा न करते हो वहाँ) से आहार लेने का अभिग्रह करना, अपनी जाति कल बताये बिना आहार लेना / अज्ञात, अपरिचित व्यक्तियों के घरों से आहार लेना। १९-मौन चरए- मौन रखकर आहार लेने का अभिग्रह करना / २०-दिट्ठ चरए-दिखता हुआ अर्थात् सामने रखा हुआ आहार लेने का अभिग्रह करना / २१-अदिट्ठ चरए- नहीं दिखता हुआ अर्थात् अन्यत्र रखा हुआ, पेटी, आलमारी आदि में रखा हुआ आहार लेने का अभिग्रह करना। २२-पुट्ठ चरए- “तुम्हें क्या चाहिए" इस प्रकार पूछकर देने वाले से आहार लेने का अभिग्रह करना / २३-अपुट्ठ चरए- बिना पूछे देने वाले से आहार लेने का अभिग्रह करना। २४-भिक्ख लाभिए- "मुझे भिक्षा दो" ऐसा कहने पर देने वाले से आहार लेने का अभिग्रह करना। . २५-अभिक्खलाभिए- "भिक्षा दो" आदि कुछ भी कहे बिना ही स्वतः देने वाले से आहार लेने का अभिग्रह करना / २६-अण्णगिलायए- नीरस, रुक्ष, ठंडा बासी, उच्छिष्ट, बचाखुचा आहारादि लेने का अभिग्रह करना / २७-ओवणीयए- दाता के समीप में पड़ा हुआ आहार लेने का अभिग्रह करना / २८-परिमिय पिंडवाइए- परिमित द्रव्यों के लेने का अभिग्रह करना / २९-संखा दत्तिए- दत्ति का परिमाण निश्चित्त करके आहार लेन का अभिग्रह करना / / | 248