________________ आगम निबंधमाला . स्थूल क्रियाओं का समावेश किया गया है / वीतरागी मनुष्यों को अपनी समस्त प्रवत्तियों से केवल पच्चीसी क्रिया ही लगती है / शेष संसारी जीवों के उक्त 24 क्रियाओं में से कई क्रियाएँ लगती रहती है। इन क्रियाओं से हीनाधिक विभिन्न मात्रा में जीव कर्म बन्ध करता है, यह जान कर जितना संभव हो इन क्रियाओं से बचने का मोक्षार्थी को पूर्ण प्रयत्न करना चाहिए। रोजना तीन मनोरथ का चिंतन करना चाहिये एवं चौदह नियमों की मर्यादा धारण करनी चाहिये ऐसा करने से महान कर्मों की निर्जरा एवं आश्रव निरोध होता है / निबध-७१ भगवान की धर्मदेशना : औपपातिक सूत्र भगवान महावीर ने राजा कूणिक, सुभद्रा आदि रानियों एवं देव, मनुष्यों की विशाल परिषद को धर्मोपदेश दिया। धर्मदेशना सुनने के लिए साधु-साध्वी एवं देवगण तथा सैकड़ों श्रोताओं के समूह उपस्थित थे। मधुर, गंभीर स्वर युक्त भगवान ने स्पष्ट उच्चारण युक्त अक्षरों में श्रोताओ की सभी भषाओं में परिणत होने वाली, एक योजन तक पहुंचने वाले स्वर में, अर्द्धमागधी भाषा में धर्म का कथन किया। उपस्थित सभी आर्य अनार्य जनों को अग्लान भाव से, बिना भेदभाव के धर्म का आख्यान किया। भगवान द्वारा फरमाई अर्द्धमागधी भाषा उन सभी आर्य अनार्य श्रोताओं के अपनी अपनी भाषाओं में बदल गई / धर्म देशना इस प्रकार यह समस्त संसार एक लोक है, इसके बाहर अलोक का अस्तित्व है। इसी प्रकार जीव, अजीव, बंध, मोक्ष, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, वेदना, निर्जरा आदि तत्व है / तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव नरक-नैरयिक, तिर्यंचयोनि, तिर्यंचयोनिक जीव, माता, पिता, ऋषि, देव, देवलोक, सिद्धि, सिद्ध, परिनिर्वाण, परमशांति, परिनिवति इन सब का लोक में अस्तित्व है / प्राणातिपात, मषावाद, चोरी, मैथुन और परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य (चुगलि) परपरिवाद, रति-अरति, माया-मषा, एवं मिथ्यादर्शन शल्य ये सभी 18 पाप है / [240