________________ आगम निबंधमाला नहीं करते हैं, उपेक्षा रखते हैं, इसलिये भी नय कहलाते हैं। यदि दूसरी अपेक्षा का खंडन, विरोध करते हैं तो ये नय वचन नय की सीमा का उल्लंघन करके दुर्नय बन जाते हैं अर्थात् इनकी नयरूपता कुनयता में बदल जाती है। ऐसे कुनयों के कारण ही अनेक विवाद एवं मत मतांतर या निन्हव आदि पैदा होते हैं / नय में क्लेश उत्पादकता नहीं है। दर्नय में क्लेशोत्पादकता है। यथा- दो व्यक्तियों ने एक ढाल देखी. दोनों अलग अलग दिशा में दूर खड़े थे। ढाल एक तरफ स्वर्ण रस युक्त थी दूसरी तरफ चांदी के रस से युक्त बनाई हुई थी। यदि वे दोनों व्यक्ति नय से बोले तो एक व्यक्ति ढ़ाल स्वर्णमय है ऐसा कहेगा। दूसरा उसे चांदी की कह देगा। दोनों अपने कथन में अनुभव में शांत रहे तो नय है। एक दूसरे की हीलना निन्दा करे कि अरे तू पागल हो गया है क्या दिखता नहीं है, साफ पीली सोने की दीख रही है। दूसरा कहे तेरी आंखों में पीलिया है। दुर्नय में झगड़ा है। यहाँ यदि स्याद्वाद अनेकांतवाद आ जाय तो कहेगा कि सफेद भी है, पीली भी है, सोना रूप भी है चांदी रूप भी है, तो शांति हो जाती है। इस प्रकार नय एवं दुर्नय को जानकर या तो नय तक सीमित रहना चाहिये या फिर सभी अपेक्षा से चिंतन कर अनेकांतवाद में आ जाना चाहिये किन्तु एकांतवाद एवं दुर्नय का आश्रय कभी भी नहीं लेना चाहिये / दुर्नय-एकांतवाद से मिथ्यात्व क्लेश एवं दुःख की प्राप्ति होती है एवं नयवाद अनेकांतवाद से शांति आनन्द की प्राप्ति होती है। एक व्यक्ति किसी का पिता है तो पुत्र की अपेक्षा. उसे पिता कहना नय है। किन्तु यह पिता ही है किसी का भी भाई, पुत्र, मामा आदि है ही नहीं, ऐसा कथन करने वाला दुर्नय हो जाता है। - मोक्षमार्ग में श्रद्धा का स्थान अति महत्त्वशील बताना नय है, किन्तु अन्य ज्ञान या क्रिया का खंडन निषेध कर देना दुर्नय हो जाता है। इसी प्रकार कभी ज्ञान का महत्त्व बताते हुए कथन विस्तार करना भी नय है, किन्तु क्रिया का निषेध नहीं होना चाहिये। क्रिया का निषेध यदि ज्ञान के महत्त्व कथन के साथ आ जाता है, तो वह भी दुर्नय हो जाता है / कभी क्रिया का महात्म्य बताते हुए विस्तृत कथन किया जा सकता किन्तु ज्ञान का निषेध या उसे निरर्थक बताने रूंप कथन होता हो तो वह भी दुर्नय हो जाता है। अतः अपनी अपेक्षित किसी भी / 23