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________________ आगम निबंधमाला यह है कि यह रूढ़ शब्द आदि को पदार्थ का अर्थ बोधक स्वीकार नहीं करता है, केवल यौगिक, निरूक्त शब्द जिस अर्थ को कहते हैं उस पदार्थ को ही यह नय स्वीकार करता है। अर्थात् रूढ़ शब्द को भी स्वीकार नहीं करता है, साथ ही जो पर्यायवाची शब्द है उन्हें भी एक रूप में स्वीकार नहीं करके भिन्न भिन्न रूप में स्वीकार करता है अर्थात् उन पर्यायवाची शब्दों का जो निरूक्त अर्थ होता है उस शब्द से उसी पदार्थ को स्वीकार करता है और दूसरे पर्यायवाची शब्द के वाच्य पदार्थ से उसे अलग स्वीकार करता है। यथा- जिन, केवली, तीर्थंकर, ये जिनेश्वर के ही बोधक शब्द है एवं एकार्थक रूप में भी है तो भी यह नय इन्हें अलग अलग अर्थ से अलग अलग ही स्वीकार करेगा। इस प्रकार यह नय निरूक्त अर्थ की प्रधानता से ही शब्द का प्रयोग उस पदार्थ के लिये करता है एवं ऐसा प्रयोग करना उपयोगी मानता है। उन पर्याय शब्द को अलग अलग पदार्थ का बोधक मानता है जिन, अल्त, तीर्थंकर ये भिन्न शब्द भिन्न भिन्न गुण वाले पदार्थ के बोधक है / एवंभूत नय- जिस शब्द का जो अर्थ है और वहं अर्थ जिस पदार्थ का बोधक है वह पदार्थ उस समय उसी अर्थ का अनुभव करता हो, उसी अर्थ की क्रियाशील अवस्था में हो, तभी उसके लिये उस शब्द का प्रयोग करना, यह इस एवंभूत नय का आशय है। अर्थात् जिस दिन जिस समय तीर्थ की स्थापना करते हो उस समय तीर्थंकर शब्द का प्रयोग करना। जिस समय सुरासुर से पूजा की जाती हो उस समय अहंत कहना, कलम से जब लिखने का कार्य किया जा रहा हो तभी उसके लिये लेखनी शब्द का प्रयोग करना / समभिरूढ़ नय निरूक्त अर्थ वाले शब्द को स्वीकार करता है और एवंभूत नय भी उसे ही स्वीकार करता है किन्तु उस भाव या क्रिया में परिणत वस्तु के लिये ही उस शब्द का प्रयोग करना स्वीकार करता है। यह इसकी विशेषता है। इस प्रकार यह नय केवल शुद्ध भाव निक्षेप को ही स्वीकार कर के कथन करता है। नय, दुर्नय और श्याद्वाद तीनों का स्वरूप : ये सातों नय अपनी अपनी अपेक्षा से वचन प्रयोग एवं व्यवहार करते हैं, उस अपेक्षा से ही ये नय कहलाते हैं। दूसरी अपेक्षा का स्पर्श | 230
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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