________________ आगम निबंधमाला कवि बुद्धिमान एवं अनेक शास्त्रों में पारंगत होता है। ४-मध्यम स्वरउच्चनाद रूप होता है। जीव्हा के मध्य भाग से उच्चारित होता है। यथा- भेड़ का स्वर, झालर का स्वर / इस स्वर वाले सुखैषी सुख जीवी होते हैं, मनोज्ञ खाते पीते एवं अन्यों को खिलाते- पिलाते दान करते हैं। ५-पंचम स्वर- नाभि, वक्षस्थल, हृदय, कंठ और मस्तक इन पाँच स्थानों के संयोग से एवं नासिका से उच्चारित होता है यथा- बसंत ऋतु में कोयल का शब्द, गोधिका वादिंत्र का स्वर / इस स्वर वाला राजा, शूरवीर, संग्राहक और अनेक मनुष्यों का नायक होता है / ६-धैवतस्वर- पूर्वोक्त सभी स्वरों का अनुसंधान(अनुसरण) करने वाला यह स्वर दंत ओष्ठ के संयोग से उच्चारित होता है। यथा- क्रौंच पक्षी का स्वर, नगाड़ा की आवाज। इस स्वर वाला मनुष्य कलह प्रिय एवं हिंसक, निर्दयी होता है / ७-निषाद स्वर- यह सभी स्वरों का पराभव करने वाला है / भृकुटि ताने हुए शिर से इसका उच्चारण होता है। यथा- हाथी की आवाज, महा भेरी की आवाज / इस स्वर वाला मनुष्य चांडाल, गोघातक, मुक्केबाज, चोर एवं ऐसे ही बड़े पाप करन वाला होता है। ये सात स्वर पूर्ण हुए। .. निबंध-६५ तीन प्रकार के अंगुल एवं उत्सेधांगुलका ज्ञान अनुयोगद्वार सूत्र में उपक्रमद्वार के तीसरे प्रमाण उपक्रम के द्वव्य, क्षेत्र आदि 4 भेद है / उसके दूसरे क्षेत्रप्रमाण में अंगुल आदि माप का कथन है। क्षेत्र प्रमाण :- इसकी जघन्य इकाई अंगुल' है। अंगुल तीन प्रकार के होते हैं यथा-१. आत्मांगुल- जिस काल में जो मनुष्य होते हैं, उनमें जो प्रमाण युक्त पुरूष होते हैं, उनके अंगुल को आत्मांगुल कहा जाता है। प्रमाण युक्त पुरूष वह होता है जो अपने अंगुल से 108 एक सौ आठ अंगुल अथवा 9 मुख प्रमाण होता है। एक द्रोण जितना जिनके शरीर का आयतन होता है और अर्द्ध भार प्रमाण जिनका वजन होता है। द्रौण और अर्द्धभार में करीब 64 सेर का परिमाण होता है। 2. उत्सेधांगुल :- 8 बालाग्र-एक लीख / आठ लीख़-एक नँ / / 220