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________________ आगम निबंधमाला दूंस-ठूस कर भरे पल्यों में भी बालानों के बीच में आकाश प्रदेश कुछ खाली रह जाते है / उसे एक दृष्टांत द्वारा समझना चाहिए। यथा- एक बड़े प्रकोष्ठ में कुष्मांड़ फल(कोल्हा फल) खचाखच भर दिए। फिर इसे हिला हिला कर उसमें बिजोरा फल भर दिए, फिर हिलाहिला कर बिल्व फल, यो क्रमशः छोटे फल आंवला, बोर, चणा, मूंग, सरसो भरे गये तो वे भी उसमें कुछ कुछ मात्रा में समा गये। उसके बाद भी जगह खाली रह जाती है। फिर भी उसमें हिला हिला कर कुछ बालू रेत भरी जाय तो उसका भी समावेश हो जायेगा, उसके बाद उसमें कुछ पानी भरा जाय तो उसका भी समावेश हो जायेगा। दूसरा दृष्टांत- सघन सागौन की लकड़ी पूर्ण ठोस है, हमें उसमें कहीं पोल नहीं दिखती है, फिर भी बारीक कील उसमें लगाई जाय तो उसको जगह मिल जाती है। इस प्रकार जैसे इनमें सघन दिखते हुए भी आकाश प्रदेश अनवगाढ़ रहते हैं, तभी अन्य वस्तु को जगह मिलती है वैसे ही एक योजन के उस पल्य में बालों से अनवगाढ़ आकाश प्रदेश रह जाते हैं / यह बात सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम के वर्णन से फलित होती है। निबंध-६४ सात स्वरो का ज्ञान .. अनुयोगद्वार सूत्र में सात स्वरों का वर्णन इस प्रकार है१-षडूज स्वर- कंठ, वक्षस्थल, तालु, जीव्हा, दंत, नासिका इन छ: स्थानों के संयोग से यह स्वर उत्पन्न होता है, जीव्हाग्र से उच्चारित होता है। यथा- मयूर का शब्द, मृदंग का शब्द / इस स्वर वाला मनुष्य आजीविका; पुत्र, मित्र आदि से संपन्न सुखी होता है / २-वृषभ स्वर- बैल की गर्जना के समान यह स्वर वक्षस्थल से उच्चारित होता है। यथा-कुकड़े का स्वर, गोमुखी वादिंत्र का स्वर। इस स्वर वाला मनुष्य ऐश्वर्यशाली होता है। सेनापतित्व एवं धनधान्य आदि भोग सामग्री को प्राप्त करता है।३-गांधार स्वर- यह कंठ से उच्चारित होता है। यथा-हंस का स्वर, शंख की आवाज / इसं स्वर वाला मनुष्य-श्रेष्ठ आजीविका प्राप्त करता है। कलाकोविद होता है। [219
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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