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________________ आगम निबंधमाला आठ = एक-जौ मध्य / आठ जौ मध्य एक उत्सेधांगुल अर्थात्-८४ 84848-4096 बाल(केश) का गोल भारा बनाने पर उसका जितना विस्तार (चोड़ाई-व्यास) होता है, उसे एक उत्सेधांगुल कहते हैं। यह अंगुल आधा इंच के करीब होता है ऐसा अनुमान किया जाता है / जिससे 12 इंच =२४अंगुल = १हाथ = 1 फुट होता है / / 3. प्रमाणांगुल :- चक्रवर्ती के कांकणी रत्न के 6 तले और 12 किनारे होते हैं उसके प्रत्येक किनारे एक उत्सेधांगुल प्रमाण होते हैं। उत्सेधांगुल से हजार गुणा प्रमाणांगुल होता है। श्रमण भगवान महावीर का अंगुल उत्सेधांगुल से दुगुना होता है अर्थात् 8192 बाल (केश) का गोल भारा बनाने पर जितना विस्तार हो उतना भगवान महावीर स्वामी का अंगुल होता है। एवं 4096000 बाल के गोल बनाये गये भारे का जितना विस्तार होता है उतना एक प्रमाणांगुल अर्थात् अवसर्पिणी के प्रथम चक्रवर्ती का अंगुल होता है। योजन का माप :-- 12 अंगुल-एक बिहस्ती(बेत)। दो बेत-हाथ। चार हाथ धनुष / दो हजार धनुष-एक कोस / चार कोस-एक योजन। यह माप तीनों प्रकार के अंगुल में समझना चाहिए। इस प्रकार योजन पर्यंत सभी माप तीन तीन प्रकार के होते हैं। इसमें आत्मांगुल से उस काल के क्षेत्र ग्राम नगर घर आदि का माप किया जाता है। उत्सेधांगुल से चारों गति के जीवों की अवगाहना का माप कहा जाता है। प्रमाणांगुल से शास्वत पदार्थो का अर्थात् द्वीप, समुद्र, पृथ्वीपिंड़, विमान, पर्वत, कूट आदि की लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई कही जाती है। अपेक्षा से लोक में तीन प्रकर के रूपी पदार्थ है (1) मनुष्य कृत ग्राम नगर मंकानादि (2) कर्म कृत-शरीर आदि (3) शाश्वत स्थान। इन तीनों का माप करने के लिए ये उपरोक्त तीन प्रकार के अंगुल से लेकर योजन पर्यंत के मापों का उपयोग होता है / परमाणु से अंगुल का माप :- सूक्ष्म परमाणु और व्यवहारिक परमाणु के भेद से परमाणु दो तरह के हैं / सूक्ष्म परमाणु अवर्ण्य है, वह अति सूक्ष्म अविभाज्य पुद्गल का अंतिम एक प्रदेश होता है / उसका आदि मध्य अंत वह स्वयं ही है। ऐसे अनंतानंत परमाणु का एक व्यवहारिक परमाणु होता है। वह भी इतना सूक्ष्म होता है कि तलवार [2210
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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