________________ आगम निबंधमाला तप एवं अन्य अनेक श्रेणी, प्रतर तप इत्वरिक अल्पकाल का अनशन तप है। आजीवन संथारा करना भी शरीर के बाह्य परिकर्म युक्त और परिकर्म रहित दोनों प्रकार का होता है, वह यावत्कथित =आजीवन अनशन तप है / (2) द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पर्याय के भेद से ऊणोदरी तप पाँच प्रकार का है। भूख से कम खाना, द्रव्य उणोदरी है। शेष चार भेद अभिग्रह संबंधी है / / (3) पेटी, अर्धपेटी आदि आगमोक्त आठ प्रकार की गोचरी या सात प्रकार की पिड़ेषणा(आचारांग में) या अन्य अनेक नियम अभिग्रह में से कोई भी अभिग्रह करके भिक्षा के लिये जाना भिक्षाचर्या तप है। अभिग्रह बिना सामान्य गोचरी करना तप नहीं किन्तु एषणा समिति रूप चारित्र है / (4) पाँच-विगय में से किसी भी एक या अनेक विगयों का त्याग करना अथवा अनेक मनोज्ञ खाद्यपदार्थों का त्याग करना, रस परित्याग तप है। (5) वीरासन आदि अनेक कठिन आसन करना, रात्रि भर एक आसन करना, लोच करना, परीषह आदि सहन करना, ये सब कायक्लेश तप है। (6) अरण्य, वृक्ष, पर्वत, गुफा, स्मशान, झोपड़ी आदि एकान्त स्थान में आत्मलीन होकर रहना अथवा कषाय, योग, इन्द्रियों के प्रवर्तन का परित्याग करना, प्रतिसंलीनता तप है। (7) दस प्रकार के प्रायश्चित्त में यथायोग्य प्रायश्चित्त स्वीकार करना, प्रायश्चित्त तप है। (8) गुरु या वडील के आने पर खड़े होना, आसन निमंत्रण करना, हाथ जोड़ कर मस्तक झुकाना आदि गुरु भक्ति और भाव सुश्रुषा करना विनय तप है। (9) आचार्य, स्थविर, रुग्ण साधु या नवदीक्षित आदि दस की यथाशक्ति सेवा करना वैयावृत्य तप है। (10) नये नये श्रुत के मूल एवं अर्थ की वाचना लेना, कंठस्थ करना; / 22 /