SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम निबंधमाला 1,67,77,216 आवलिका। 1 प्राण=४४४६ साधिक आवलिका। 1 सेकंड़-५८२५-१९/४५ आवलिका। 1 प्राण=२८८०/३७७३ सेकंड़ होते हैं अर्थात् एक सेकंड से कम / 1 मुहूर्त-२८८० सेकंड़ / 1 मुहूर्त 48 मिनिट / एक मिनिट-६० सैकंड़ / 30 मुहूर्त एक दिन। 84 लाख वर्ष-एक पूर्वांग। 84 लाख पूर्वांग-एक पूर्व / आगे की प्रत्येक काल संज्ञा एक दूसरे से 84 लाख गुणी होती है। अंत में शीर्ष प्रहेलिकांग से शीर्ष प्रहेलिका 84 लाख गुणी होती है। इतनी संख्या तक गणित का विषय माना गया है। इसके आगे की संख्या उपमा द्वारा कही जाती है। उत्कृष्ट संख्याता की संख्या उपमा द्वारा पूर्ण होती है। उस उत्कृष्ट संख्याता में एक अधिक होते ही जघन्य असंख्याता होता है।। उपमा द्वारा काल गणना प्रमाण- पल्योपम और सागरोपम रूप दो प्रकार की उपमा से काल गणना की जाती है। पल्योपम के गणना की उपमा समझ लेने के बाद सागरोपम की गणना सहज समझ में आ जाती है। क्यों कि किसी भी प्रकार के पल्योपम से उसका सागरोपम दस क्रोड़ाक्रोड़ गुना होता है। अतः सर्व प्रथम केवल पल्योपम का वर्णन भेद-प्रभेद के विस्तार से किया जाता है। उपमा गणना का पल्योपम तीन प्रकार का होता है। १.उद्धार पल्योपम २.अद्धा पल्योपम ३.क्षेत्र पल्योपम / इन तीनों के पुनः सूक्ष्म और व्यवहार(बादर) दो-दो भेद होते हैं। उद्धार पल्योपम की उपमा में बालाग्र एक एक समय में निकाले जाते हैं अद्धा पल्योपम की उपमा में बालाग्र 100 वर्ष से निकाले जाते हैं और क्षेत्र पल्योपम में बालानों के आकाश प्रदेश का हिसाब होता है अर्थात् गिनती की जाती है / . (1) उद्धार बादर पल्योपम' में एक दिन से सात दिन के युगलियों के बाल अंखड़ भरे जाते और निकाले जाते हैं जबकि 'सूक्ष्म' में उस एक एक बाल के असंख्य खंड़ करके भरे जाते हैं और बालखंड निकाले जाते हैं / सूक्ष्म पनक जीवों की अवगाहना से असंख्यगुणे बड़े और निर्मल आँखों से जो छोटी से छोटी वस्तु देखी जा सकती है उससे असंख्यातवाँ भाग हो, ऐसे असंख्य खंड़ बालाग्र के समझने चाहिए। (2) ऐसा ही अंतर बादर 'अद्धा पल्योपम' और सूक्ष्म अद्धा पल्योपम 217
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy