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________________ आगम निबंधमाला किया है। जब अंपेक्षा शब्द का उपयोग कर दिया गया है तो देखने का भी विधान करना ही उपयुक्त है अत: भगवती का पाठ ही शुद्ध प्रतीत होता है। अपेक्षा शब्द लगाकर के भी नहीं देखना कहना और फिर टीकाकार उसका स्पष्टीकरण करे कि अमुक अपेक्षा से देखता है और अमुक अपेक्षा से नहीं देखता है यह अनुपयुक्त होता है। अतः नंदी सूत्र में कभी भी लिपि प्रमाद से या समझ भ्रम से 'नो' शब्द लगा दिया गया है ऐसा समझना चाहिये / क्यों कि अपेक्षा शब्द कहने के बाद बहुत गुंजाइस स्वतः रह जाती है। तभी सूत्र में सब द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव को जानना कह दिया गया है। श्रुत ज्ञान में भी अपेक्षा से उपयोग हो तो सर्व द्रव्य क्षेत्र काल भाव जानने देखने की उत्कृष्ट क्षमता दोनों सूत्रों में कही गई है। अतः भगवती सूत्र के समान नंदी में भी मतिज्ञान का विषय समझना चाहिये / टीकाकारों के पूर्व से ही यह लिपि दोष प्रतियों में आ चुका था। किंतु भगवती सूत्र के प्रमाण से इसे सुधारने में ही सही निराबाध तत्त्व सिद्ध होता है। सार- मतिज्ञान अपेक्षा से सर्व द्रव्य,क्षेत्र,काल,भाव जाने और देखे। निबंध-६० द्वादशांगी परिचय के तीन सूत्रों में तुलना समवायांग सूत्र में 12 अंगसूत्रों के परिचय संबंधी वर्णन कुछ कुछ अधिक एवं विस्तृत दिया गया है, और नंदी सूत्र में कुछ कम दिया गया है। इसके अतिरिक्त परिचय लगभग समान दिया गया है। नंदी में भगवती सूत्र की पद संख्या 2 लाख 88 हजार है, समवायांग में 84 हजार है। नंदी में अंतगड़ सूत्र के आठ वर्ग, आठ उद्देशन काल कह हैं और अध्ययन का कथन नहीं है। समवायांग में 10 अध्ययन और दस उद्देशन काल कहे हैं, वर्ग सात कहे हैं। नंदी में अणुत्तरोपपातिक सूत्र के तीन वर्ग तीन उद्देशन काल कहे हैं समवायांग में 10 अध्ययन 10 उद्देशन काल कहे हैं और वर्ग 3 कहे हैं। शेष विषय वर्णन एक सा है। - (1) उपासक दशा, (2) अंतगड़ दशा, (3) अणुत्तरोपपातिक दशा, (4) प्रश्न व्याकरण, (5) विपाक सूत्र के अध्ययनों की संख्या 209
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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