________________ आगम निबंधमाला , कुलकरों के नाम ये है- (1) सुमति (2) प्रतिश्रुति (3) सीमंकर (4) सीमंधर (5) क्षेमंकर (6) क्षेमंधर (7) विमलवाहन (8) चक्षुष्मान (9) यशोवान (10) अभिचन्द्र (11) चन्द्राभ (12) प्रसेनजीत (13) मरुदेव (14) नाभि। इसके बाद प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान भी पहले कुछ समय कुलकर अवस्था में रहे / कुल 83 लाख पूर्व संसारावस्था में रहे। इस प्रकार प्रत्येक अवसर्पिणी के तीसरे आरे की मिश्रण काल की अवस्था समझनी चाहिये। नाभी और मरुदेवी भी युगल पुरुष और स्त्री ही थे किन्तु मिश्रण काल होने से उनकी अनेक वर्षों की उम्र अवशेष रहते हुए भी भगवान ऋषभदेव का इक्ष्वाकु भूमि में जन्म हुआ था। उस समय तक नगर आदि का निर्माण नहीं हुआ था। 64 इन्द्र आदि आये, जन्माभिषेक किया। बाल्यकाल के बाद भगवान ने योवन अवस्था में प्रवेश किया, कुलकर बने, फिर राजा बने / बीस लाख पूर्व की उम्र में राजा बने, 63 लाख पूर्व तक राजा रूप में रहे। कुल 83 लाख पूर्व संसारावस्था में रहे। लोगों को कर्म भूमि की योग्यता के अनेक कर्तव्यों कार्यकलापों का बोध दिया। पुरुषों की 72 कला, स्त्रियों की 64 कला, शिल्प, व्यापार, राजनीति आदि का, विविध नैतिक सामाजिक व्यवस्थाओं एवं संसार व्यवहारों का ज्ञान विज्ञान प्रदान किया। शक्रेन्द्र ने वैश्रमण देव के द्वारा दक्षिण भरत के मध्य स्थान में विनिता नगरी का निर्माण कराया और भगवान का राज्याभिषेक किया। अन्य भी गाँव नगरों का निर्माण हुआ / राज्यों का विभाजन हुआ। भगवान ऋषभदेव के 100 पुत्र हुए थे। उन सभी को अलग अलग 100 राज्य बांट कर राजा बना दिया। भगवान के दो पुत्रियाँ हुई- ब्राह्मी और सुंदरी। जिनका भरत और बाहुबली के साथ युगल रूप में जन्म हुआ था। भगवान ऋषभदेव के विवाह विधि का वर्णन सूत्र में नहीं है, व्याख्याग्रंथों में बताया गया है कि मिश्रण काल के कारण सुनंदा और सुमंगला नामक दो कुंवारी कन्याओं के साथ युगल रूप में उत्पन्न बालकों के मृत्यु प्राप्त हो जाने पर वे कन्याएँ कुलकर नाभि के संरक्षण में पहुँचा दी गई थी। वे दोनों ऋषभदेव भगवान के साथ में ही संचरण करती थी। योग्य वय में आने पर शक्रेन्द्र ने अपना जीताचार