________________ आगम निबंधमाला समचौरस संस्थान होता है। उनके शरीर में 256 पसलियाँ होती है / उन युगल मनुष्यों को तीन दिन से आहार की इच्छा उत्पन्न होती है। उनका आहार पृथ्वी, पुष्प और फल स्वरूप होता है। उन पदार्थों का आस्वाद चक्रवर्ती के भोजन से अधिक स्वादिष्ट होता है। वे मनुष्य जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट दुःख नहीं देखते। सहज शुभ परिणामों से मर कर वे देवगति में ही जाते हैं। देवगति में भवनपति से लेकर पहले दूसरे देवलोक तक जन्मते हैं, आगे नहीं जाते। अपनी स्थिति से कम स्थिति के देव बन सकते हैं, अधिक स्थिति के नहीं अर्थात् ये युगल मनुष्य तीन पल से अधिक स्थिति के देव नहीं बन सकते। १००००वर्ष से लेकर 3 पल तक की कोई भी उम्र प्राप्त कर सकते हैं। अन्य किसी भी गति में ये नहीं जाते हैं / तिर्यंच युगलिक भी इसी तरह जीवन जीते हैं और देवलोक में जाते हैं। उनकी उत्कृष्ट अवगाहना मनुष्य से दुगुनी होती हैं और जघन्य अनेक धनुष की होती हैं। मनुष्य की जघन्य अवगाहना तीन कोस में किंचित(२-४ अंगुल) कम होती है, उत्कृष्ट उस समयकी परिपूर्ण अवगाहना होती है। ऐसा तीनों आरों में समझ लेना। सामान्य तिर्यंच भी अनेक जाति के होते हैं। यह पहले आरे / का वर्णन पूरा हुआ / यह काल 4 क्रोडाक्रोड़ सागरोपम तक चलता है। पहला आरा पूर्ण होने पर दूसरा आरा प्रारम्भ होता है। सभी रूपी पदार्थों के गुणों में अनंतगुणी हानि होती है / इस आरे के प्रारम्भ में मनुष्य की उम्र 2 पल्योपम और अंत में एक पल्योपम की होती है। अवगाहना प्रारम्भ में 2 कोस और अंत में एक कोस होती है। उनके शरीर में 128 पसलियाँ होती है / दो दिन से आहारेच्छा उत्पन्न होती है। माता-पिता पुत्र पुत्री की पालना 64 दिन करते हैं। ये सभी परिवर्तन भी क्रमिक होते हैं ऐसा समझना चाहिये। शेष वर्णन प्रथम आरे के समान है। तिर्यंच का वर्णन भी प्रथम आरे के समान जानना। यह आरा तीन क्रोड़ा-क्रोड़ सागरोपम तक चलता है। तीसरा आरा :- इस आरे के दो तिहाई भाग तक मानव पूर्ण सुखी होते है, पिछले एक तिहाई भाग में कल्पवृक्ष कम होने लगते हैं और मानव स्वभाव में अंतर आता है। तब कुछ दुःख होने से इस आरे का नाम [194