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________________ आगम निबंधमाला 72 योजन = 8,64,000 कि.मी. बाण जाकर भवन में पड़ता है। (एक शाश्वत योजन=१२०००की.मी.माना गया है अपेक्षा से / यह मान्यता और गणित भी 2-3 तरह से माना जाता है जिसमें करीब 8000 से 12000 तक की संख्या मानी जाती है / ) तात्पर्य यह है कि वर्तमान में समुद्रों में खोजने पर भी ये तीर्थ मिल नहीं सकते। क्यों कि इतने कि.मी. की गिनती वैज्ञानिकों के कल्पना से बाहर की बात हो जाती है। निबंध-५६ भरत चक्रवर्ती को केवलज्ञान इस संबंध में यहाँ आगम वर्णन इस प्रकार है-एक बार भरत चक्रवर्ती स्नान करके एवं विविध श्रृंगार करके सुसज्जित अलंकृत विभूषित होकर अपने काच महल में पहुँचा और सिंहासन पर बैठ कर अपने शरीर को देखते हुए विचारों में लीन बन गया। कांच महल हो या कला मंदिर हो, व्यक्ति के विचारों का प्रवाह सदा स्वतंत्र है वह किधर भी मोड़ ले सकता है। भरत चक्रवर्ती अपने विभूषित शरीर को देखते हुए चिंतनक्रम में बढ़ते बढ़ते वैराग्यभावों में पहुँच गये। शुभ एवं प्रशस्त अध्यवसायों की अभिवृद्धि होते होते, लेश्याओं के विशुद्ध विशुद्धतर होने से, उनके मोह कर्म एवं क्रमशः घातिकर्मों का क्षय हो गया। वहीं उन्हें केवलज्ञान केवलदर्शन उत्पन्न हो गया। भरत चक्रवर्ती कांचमहल में ही भरत केवली बन गये। एक तरफ विचारों का वेग ध्यान में खड़े हुए मुनि को सातवीं नरक में जाने योग्य बना देते है तो दूसरी तरफ ये ही विचार प्रवाह व्यक्ति को राजभवन और कांचमहल में ही भावों से केवली सर्वज्ञ सर्वदर्शी बना सकते हैं / ऐसा भी वर्णन मिलता है कि भरत चक्रवर्ती की दादी भगवान ऋषभदेव की माता को तो हाथी पर बैठे हुए ही केवलज्ञान उत्पन्न हो गया था। - भरत केवली ने अपने आभूषण आदि उतारे, पंचमुष्टि लोच किया और कांच महल से निकले / अंतःपुर में होते हुए विनीता नगरी से बाहर निकले और 10 हजार राजाओं को अपने साथ दीक्षित कर उस [191
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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