________________ आगम निबंधमाला .. का नाश करने वाली होती है। इसे श्री देवी भी कहा जाता है। भरत चक्रवर्ती की श्री देवी स्त्री रत्न का नाम सुभद्रा था। ये सात(८ से 14) पंचेन्द्रिय रत्न हैं। इन 14 रत्नों के एक-एक हजार देव सेवक होते हैं अर्थात् ये 14 ही रत्न देवाधिष्ठित होते हैं। निबंध-५५ चक्रवर्ती के खंड साधन के केन्द्र और 13 तेले सेनापति केवल दो तेले दोनों गुफा के द्वार खोलने के समय करता है। चक्रवर्ती के 13 तेले इस प्रकार है- (1) मागधतीर्थ का (2) वरदामतीर्थ का (3) प्रभासतीर्थ का (4) सिंधुदेवी का (5) वैतादयगिरिकुमार देव का (6) गुफा के देव का (7) चुल्लहिमवंत कुमार देव का (8) विद्याधरों का (9) गंगादेवी का (10) दूसरी गुफा के देव का (11) नौ निधि का (12) विनीता प्रवेश का (13) राज्याधिषेक का। ऋषभकूट पर माम लिखने का तेला नहीं होता है / चुल्लहिमवंत पर्वत के तेले का पारणा किये बिना ही यहाँ नाम लिखा जाता है। फिर पड़ाव में आकर पारणा किया जाता है। . तेले से देव-देवी का आसन कंपायमान होता है अर्थात् अंगस्फुरण होता है जिससे वे अपने अवधिज्ञान में उपयोग लगाकर जान लेते हैं कि चक्रवर्ती राजा भरत क्षेत्र में उत्पन्न हुआ है और हमारा जीताचार है कि उसकी आज्ञा स्वीकारना एवं सत्कार सन्मान कर उत्तम वस्तु समर्पण करना। चार जगह तेले से नहीं मालुम होता है, तीर जाने पर तीर पर लेखन को पढ़कर समझ जाते है और पहले तीर देखकर गुस्सा करते है फिर लेखन पढ़ने पर विनम्र बन जाते है जीताचार होने से। बाण पर क्या लिखा होता है इसका स्पष्टीकरण नहीं है किन्तु भाव यह है कि चक्रवती का संक्षिप्त परिचय एवं नाम लिखा होता है जिसे पढ ते ही देव को अपना जीताचार ध्यान में आ जाता है। तीनों तीर्थों में बाण 12 योजन(शाश्वत) जाता है और देव के भवन में गिरता है / 12 योजन=१,४४,००० कि.मी: करीब समझना चाहिये / पुण्य प्रभाव से जो देवनामी शस्त्र आदि होते है व चक्रवर्ती के इच्छित स्थान पर पहुँच जाते है। चुल्लहिमवंत पर्वत पर [ 190