________________ आगम निबंधमाला निर्माण करने में कुशल होता है / 81 प्रकार की वास्तुकला का अच्छा जानकार होता है। भवन निर्माण के सभी कार्य का पूर्ण अनुभवी होता है। काष्ट कार्य करने में कुशल होता है। शिल्प शास्त्र निरूपित 45 देवताओं के स्थानादिक का विशेष ज्ञाता होता है। जलगत, स्थलगत, सुरंगों, खाइयों, घटिका यंत्र, हजारों खंभों से युक्त पुल आदि के निर्माण ज्ञान में प्रवीण होता है। व्याकरण ज्ञान में, शुद्ध नामादि चयन लेखन अंकन में, देव पूजागृह, भोजनगृह, विश्रामगृह आदि के संयोजन में प्रवीण होता है। यान वाहन आदि के निर्माण में समर्थ होता है। चक्रवर्ती के छ खंड साधन विजय यात्रा के समय प्रत्येक योजन पर यह बढ़ई रत्न ही शैन्य शिविर तम्बू एवं पोषधशाला आदि बनाता है। शरीर का मान चक्रवर्ती के समान होता है। . (11) पुरोहितरत्न-ज्योतिष विषय का ज्ञाता तिथिज्ञ मुहूर्त, हवनविधि, शांत कर्म आदि का ज्ञाता होता है। अनेक धर्मशास्त्रों का ज्ञाता होता है। संस्कृत आदि अनेक भाषाओं का जानकार होता है। शरीर प्रमाण चक्रवर्ती के समान होता है। (12) गजरत्न-यह चक्रवर्ती का प्रधान हस्ति होता है। चक्रवर्ती प्रायः हाथी पर बैठकर ही विजय विहारयात्रा एवं भ्रमण आदि करता है। (13) अश्वरत्न-यह 80 अंगुल ऊँचा, 99 अंगुल मध्य परिधि वाला, 108 अंगुल लम्बा, 32 अंगुल के मस्तक वाला, चार अंगुल कान वाला होता है। सरवरेन्द्र के वाहन के योग्य, विशद्ध जाति कुल वाला, अनेक उच्च लक्षणों से युक्त, मेधावी, भद्र विनीत होता है। अग्नि, पाषाण, पर्वत, खाई, विषम स्थान, नदियों, गुफाओं को अनायास ही लांघने वाला ए वंसंकेत के अनुसार चलने वाला होता है; कष्टों में नहीं घबराने वाला, मलमूत्र आदि योग्य स्थान देख कर करने वाला, सहिष्णु होता है। तोते के पंख के समान वर्ण वाला होता है। युद्धभूमि में निडरता से एवं कुशलता से चलने वाला होता है। (14) स्त्रीरत्न-यह चक्रवर्ती की प्रमुख राणी होती है। वैताढ्य पर्वत के उत्तरी विद्याधर श्रेणी में प्रमुख राजा विनमि के यहाँ उत्पन्न होती है। स्त्री गणों, सुलक्षणों से युक्त होती है। चक्रवर्ती के सदृश रूप लावण्यवान, ऊँचाई में कुछ कम, सदा सुखकर स्पर्श वाली, सर्व रोगों [189/