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________________ आगम निबंधमाला निधियाँ आठ चक्रों पर(पहियों पर) अवस्थित रहती है ।सभी चक्रवर्तीओं के उपयोग में आने वाली होने से शास्वत होते हुए भी ये निधियाँ देव यान विमानों के संकोच विस्तार के समान स्वभाव वाली होती है / जैसे देव विमान देवलोक से चलते समय लाख योजन का होता है और अपने उत्पात पर्वत पर उसका संकोच कर दिया जाता है वैसे ही नगरी में एवं लक्ष्मीगृह के अंदर मुख जोडने के समय संकोच करके छोटा बना दिया जाता है / निधियाँ देवाधिष्ठित तो होती ही है अत: ऐसा होने में देवकृत समझना / निबंध-५४ चक्रवर्ती के 14 रत्नों का विशेष परिचय (1) चक्ररत्न-चक्रवर्ती का यह सबसे प्रधान रत्न है, इसका नाम सुदर्शन चक्र रत्न है। यह 12 प्रकार के वाद्यों के घोष से युक्त होता है। मणियों एवं छोटी छोटी घंटियों के समूह से व्याप्त होता है / इसके आरे, लाल रत्नों से युक्त होते हैं। आरों का जोड़ वज्रमय होता है / नेमि पीले स्वर्णमय होती है। मध्यान्ह काल के सूर्य के समान तेजयुक्त होता है। एक हजार यक्षों से(व्यंतर देवों से) परिवृत होता है। आकाश में गमन करता है एवं ठहर जाता है। चक्रवर्ती की शस्त्रागार शाला में उत्पन्न होता है एवं उसी में रहता है। खंड साधन विजय यात्रा में कृत्रिम शस्त्रागार शाला में अर्थात् तंबू से बनाई गई शाला में रहता है। इसी चक्र की प्रमुखता से ही वह राजा चक्रवर्ती कहा जाता है। वह रत्न विजय यात्रा में महान घोष नाद के साथ आकाश में चल कर 6 खंड साधन का मार्ग प्रदर्शित करता है। सर्व ऋतुओं के फूलों की मालाओं से वह चक्ररत्न परिवेष्टित रहता है। (2) दंड़रत्न-गुफा का द्वार खोलने में इसका उपयोग होता है। यह एक धनुष प्रमाण होता है। विषम पथरीली भूमि को सम करने के काम आता है। यह वज्रसार का बना होता है। शत्रु सेना का विनाशक, मनोरथ पूरक, शांतिकर शुभंकर होता है। (3) असिरत्न-५० अंगुल लम्बी, 16 अंगुल चौड़ी, आधा अंगुल जाड़ी एवं चमकीली तीक्ष्ण धार वाली तलवार होती है। यह स्वर्णमय मूठ / 186
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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