________________ आगम निबंधमाला एवं रत्नों से निर्मित होती है। विविध प्रकार के मणियों से चित्रित बेलों आदि के चित्रों से युक्त होती है। शत्रुओं का विनाश करने वाली दुर्भेद्य वस्तुओं का भी भेदन करने वाली होती है। इसे असिरत्न कहा गया है। (4) छत्ररत्न-यह चक्रवर्ती के धनुष प्रमाण जितना स्वाभाविक लम्बाचौड़ा होता है। 99 हजार स्वर्णमय ताड़ियों से युक्त होता है। ये शलाकाएँ दंड से जुड़ी हुई होती है। इनके कारण फैलाया हुआ छत्र पीजरे के सदृश प्रतीत होता है। छिद्र रहित होता है। स्वर्णमय सुदृढ़ दंड मध्य में होता है। विविध चित्रकारी से मणिरत्नों से अंकित होता है / चक्रवर्ती की सम्पूर्ण सेना की धूप आँधी वर्षा आदि से सुरक्षा कर सकता है। उसकी पीठ भाग अर्जुन नामक सफेद सोने से आच्छादित होता है। सर्व ऋतुओं में सुखप्रद होता है। . (5) चर्मरत्न-चर्म निर्मित वस्तुओं में यह सर्वोत्कृष्ट होता है। चक्रवर्ती के एक धनुष प्रमाण स्वाभाविक होता है। फैलाये जाने पर चर्मरत्न और छत्ररत्न 12 योजन लम्बे एवं 9 योजन चौड़े विस्तृत हो जाते हैं। यह जल के ऊपर तैरता है। सम्पूर्ण चक्रवर्ती की सेना परिवार इसमें बैठकर नदी आदि पार कर सकता है। ये दोनों चर्म और छत्ररत्न चक्रवर्ती के स्पर्श करते ही विस्तृत हो जाते हैं / यह कवच की तरह अभेद्य होता है। 17 प्रकार के धान्य की खेती इसमें तत्काल होती है। हिलस्टेशन (आबू पर्वत आदि)पर अभी भी मामूली वर्षा में चूने की भित्तियों पर एवं टीण कवेलु के तिरछे छतों पर कितने ही प्रकार की लम्बी वनस्पतियाँ स्वतः उग जाती है। उसी प्रकार इस चर्मरत्न में कुशल गाथापति रत्न एक दिन में धान्य निपजा सकता है। यह अचल अकंप होता है स्वस्तिक जैसा इसका स्वाभाविक आकार होता है। यह अनेक प्रकार के चित्रों से युक्त मनोहर होता है। छत्ररत्न को इसके साथ जोड़कर डिब्बी रूप बनाने योग्य इसके किनारो पर जोड़ स्थान होते हैं। (6) मणिरत्न-यह मणिरत्न अमूल्य(मूल्य नहीं किया जा सके ऐसा) होता है। चार अंगुल प्रमाण, त्रिकोण, छ किनारों वाला होता है एवं यह पाँचतला होता है। मणिरत्नों में श्रेष्ठतम एवं वैडूर्यमणि की जाति का होता है। सर्व कष्टनिवारक, आरोग्यप्रद, उपसर्ग व विघ्नहारक होता | 187