________________ आगम निबंधमाला .. है / उसमें 32 हजार ऋत-कल्याणिका और 32 हजार जनपद कल्याणिका राणियाँ कही जाती है। जिससे कुल 64 हजार की संख्या सर्वत्र एक समान मिलती है। अन्य विशेष स्पष्टीकरण कहीं देखने में नहीं आया है। ये ऋद्धिसंपन्न पुरुष चक्रवर्ती आदि वैक्रिय लब्धिसंपन्न होते हैं और महा पुण्यशाली होते हैं / उस पुण्य उदय के कारण और भोगावली कर्म उदय के कारण लब्धिसंपन्न इन पुरुषों के इतनी राणियों का होना कोई असंगत जैसा नहीं होता है / चौथे आरे में अन्य भी अनेक पुण्यशाली मनुष्य वैक्रिय लब्धि युक्त हो सकते हैं / उसी कारण 32,50,500 आदि कन्याओं के साथ पाणिग्रहण होने का प्रसंग-वर्णन योग्य बनता है / कथा वर्णनों में कृष्ण वासुदेव के पिता वसुदेवजी के स्त्रीवल्लभ होने का नियाणा और अखूट पुण्य संचय होने से चक्रवती से भी अधिक राणियाँ(७२०००)होने का कहा जाता है / ज्ञातासूत्र में . कृष्ण वासदेव के रुक्मणी प्रमुख 32000 राणिया स्पष्ट कही गई है जो चक्रवर्ती की राणियों से आधी संख्या रूप समझी जा सकती है / कलाएँ :- आगमों में पुरुष की 72 कलाएँ और स्त्री की 64 कलाओं का कथन अनेक जगह आता है / पुरुष की 72 कलाएँ समवायांग सूत्र के ७२वें समवाय में प्रश्नोत्तर में दी गई है, स्त्री की ६४कलाएँ इस प्रकार है-(१) नृत्यकला (2) औचित्यकला (3) चित्रकला (4) वादिंत्र (5) मंत्र (6) तंत्र (7) ज्ञान (8) विज्ञान (9) दंड (10) जलस्तंभन (11) गीतगान (12) तालमान (13) मेघवृष्टि (14) फलवृष्टि (15) आरामरोपण (16) आकारगोपन (17) धर्मविचार (18) शकुनविचार (19) क्रियाकल्पन (20) संस्कृतभाषण (21) प्रसादनीति (22) धर्मनीति (23) वाणीवृद्धि (24) सुवर्णसिद्धि (25) सुरभितैल (26) लीलासंचरण (27) हाथी-घोड़ा परीक्षण (28) स्त्री-पुरुष लक्षण (29) सुवर्ण-रत्नभेद (30) अष्टादशलिप ज्ञान (31) तत्काल बुद्धि (32) वस्तुसिद्धि (33) वैद्यकक्रिया (34) कामक्रिया (35) घटभ्रम (36) सारपरिश्रम (37) अंजनयोग (38) चूर्णयोग (39) हस्तलाघव (40) वचनपटुता (41) भोज्य विधि (42) वाणिज्यविधि (43) मुखमंडन (44) शालिखंडन (45) कथा कथन (46) पुष्पग्रथन (47) वक्रोक्ति जल्पन (48) / 18