________________ आगम निबंधमाला .. . 2- प्लेटो के जाने-माने हुए शिष्य अरस्तु पुनर्जन्म के सिद्धान्त को मानने के लिए इतने आग्रहशील थे कि उन्होंने अपने समकालीन दार्शनिकों को आव्हान करते हुए कहा कि "हमें इस मत का कंदापि आदर नहीं करना चाहिए कि हम मानव ही है तथा अपने विचार मत्युलोक तक ही सीमित न रखें, अपितु अपने देवी अंश को जागत कर अमरत्व को प्राप्त करें / " ३-स्थूल के अभिमतानुसार भावी जीवन के निषेध करने का अर्थ हैस्वयं के ईश्वरत्व का तथा उच्चतर नैतिक जीवन का निषेध करना है / 4- फ्रांसीसी धर्म प्रचारक मोसिला तथा ईसाई संत पाल के अनुसार"देह के साथ ही आत्मा का नाश मानने का अर्थ होता है कि विवेकपूर्ण जीवन का अन्त करना और विकारमय जीवन के लिए द्वार मुक्त करना / " ५-फ्रेंच विचारक रेनन का अभिमत है कि भावी जीवन में विश्वास न करना, नैतिक और आध्यात्मिक पतन का कारण है / . ६-मैकटेगार्ट की दृष्टि से आत्मा में अमरत्व की साधक युक्तियों से हमारे भावी जीवन के साथ ही पूर्वजन्म की सिद्धि होती है / ७-सर हेनरी जोन्स लिखते है कि "अमरत्व के निषेध का अर्थ होता है पूर्ण नास्तिकता / " ८-श्री प्रिंगल पेटिसन ने अपने अमरत्व-विचार नामक ग्रन्थ में लिखा है कि "यह कहना अतिशयोक्ति पूर्ण न होगा कि मत्यु विषयक चिन्तन ने ही मनुष्य को सच्चे अर्थ में मनुष्य बनाया है।" इन अवतरणों से भी यह स्पष्ट है कि विश्व के सभी मूर्धन्य मनीषियों ने आत्मा की अमरता और पुनर्जन्म के सिद्धांत को स्वीकार किया है। निबंध-४९ कर्म की अवस्थाएँ कर्म की विभिन्न अवस्थाएँ है / मुख्यरूप से उन्हें ग्यारह भेदों में विभक्त कर सकते हैं / १-बन्ध, २-सत्ता, ३-उद्वर्तन-उत्कर्ष, / 176