________________ आगम निबंधमाला 2- गीता में कहा गया है- जैसे फटे हुए कपड़े को छोड़कर मनुष्य नया कपड़ा पहनता है, वैसे ही पुराने शरीर को छोड़कर प्राणी मत्यु पश्चात् नये शरीर को धारण करता है / यह आवर्तन प्रवत्ति से होता है / 3- तथागत बुद्ध ने अपने पैर में चुभने वाले तीक्ष्ण कांटे को पूर्वजन्म में किये हुए प्राणीवध का विपाक कहा है / 4- नवजात शिशु के हर्ष, भय, शोक आदि होते हैं / उसका मूल कारण पूर्वजन्म की स्मति है / जन्म लेते ही बच्चा मां का स्तन-पान करने लगता है, यह पूर्वजन्म में किये हुए आहार के अभ्यास से ही होता है। जैसे एक युवक का शरीर बालक शरीर की उत्तरवर्ती अवस्था है वैसे ही बालक का शरीर पूर्वजन्म के बाद में होने वाली अवस्था है / 5- नवोत्पन्न शिशु में जो सुख-दुःख का अनुभव होता है, वह भी पूर्व अनुभवयुक्त होता है / 6- जीवन के प्रति मोह और मृत्यु के प्रति भय होता है, वह भी पूर्वबद्ध संस्कारों का परिणाम है / यदि पहले के जन्म में उसका अनुभव नहीं होता तो सद्योजात प्राणी में ऐसी वत्तियाँ प्राप्त नहीं हो सकती थी। इस प्रकार अनेक युक्तियाँ देकर. भारतीय चिंतकों ने पुनर्जन्म सिद्ध किया है। परलोक के मत सम्मत :- कर्म की सत्ता स्वीकार करने पर उसके फल रूप परलोक या पुनर्जन्म की सत्ता भी स्वीकार करनी पड़ती है / जिन कर्मों का फल वर्तमान भव में प्राप्त नहीं होता, उन कर्मों के भोग के लिए पुनर्जन्म मानना आवश्यक है / पुनर्जन्म और पूर्वभव न माना जायेगा तो कृतकर्म का विनाश और अकृत कर्म का भोग मानना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में कर्म-व्यवस्था दूषित हो जायेगी। इन दोषों के परिहार हेतु ही कर्मवादियों ने पुनर्जन्म की सत्ता स्वीकार की है। . भारत के सभी दार्शनिकों ने ही नहीं अपितु पाश्चात्य विचारकों ने भी पुनर्जन्म के सम्बन्ध में विचार अभिव्यक्त किये हैं जिनका संक्षिप्त सारांश इस प्रकार हैविदेशी अभिमत :- १-यूनान के महान् तत्ववेत्ता प्लेटो ने दर्शन की व्याख्या की है और उसका केन्द्र बिन्दु रूप में पुनर्जन्म को माना है। 175