________________ आगम निबंधमाला बिन साबुन रुजगार लिए बिन, कर्म मैल दे धोय / निंदा // निदक सम उपकार करे कुण, अतर घट में जोय / निदा // तन जतन कर मन थिर राखो, सोने काट न होय / निंदा निंदक मती मरजे रे, म्हारी निंदा करेला कोण / टेर // निंदक नेड़ो आवजे रे, आड़ी कोट चुणाय / बिन साबुन पाणी बिना, म्हारा कर्म मैल कट जाय ॥निंदक // धोबी धोवे धोतिया रे, निंदक धोवे मैल / भार हमारा ले चलियो रे, जिम विणजारे को बैल // निंदक // भरी सभा में निंदक बैठो, चित निंदा के माँय / ज्ञान ध्यान तो कुछ नहीं जाणे, कुबुद्धि हिया रे माँय // निंदक // मस्तक मैल उतारिये रे, दे दे हाथों जोर / निंदक उतारे जीभ से प्यारे, यह क्या अचरण होय // निंदक // निंदक तो मर जावसी रे, जिम पाणी लँण / चम्पक की प्रभू विनती म्हारी, निंदा करसी कूँण // निंदक // . प्र.२२ निंदा के लिये "इंखिणी" शब्द का प्रयोग किस सूत्र में किया है ? वहाँ क्या भाव कहा है? उत्तर- सूयगडांग सूत्र प्रथम श्रुतस्कंध के दूसरे अध्ययन के दूसरे उद्देशक की दूसरी गाथा में है / वह गाथा और उसका भावार्थ इस प्रकार है जे परिभवइ परं जणं, संसारे परियत्तइ महं / / ___अदु इखिणिया उ पाविया, इति संखाय मुणी न मज्जइ // अर्थ- जो दूसरों का पराभव-तिरस्कार करता है, हीलना निंदा करता है, वह चिरकाल तक महान संसार में भ्रमण करता है / पराई निंदा करना, एक पापाचरण ह, ऐसा जानकर मुनि अभिमान नहीं करे अर्थात् स्वयं की प्रशंसा और दूसरों की निंदा न करे / प्र.२३ 18 पाप का आजीवन त्यागी साधु किसी की निंदा करे तो? उत्तर- वह अपने साधुत्व से भ्रष्ट होता है / पंद्रहवाँ पाप रूप निंदा के सेवन से वह अपनी पाप त्याग की प्रतिज्ञा को भंग करता है। अपनी गलती को समझता भी नहीं है, अत: वह साधु होते हुए भी अज्ञानी बालजीव है / पापदोषों की शुद्धि बिना उनकी आराधना भी संभव नहीं है / | 17