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________________ आगम निबंधमाला प्रति पश्चात्ताप का भाव जागत होगा तभी आत्म-निंदा की जायेगी। प्र.१० आत्म निंदा से क्या लाभ होते हैं / उत्तर- आत्म-निंदा एक प्रकार का दर्पण है / इसमें अपने जीवन की खामियाँ, दुर्बलताएँ और बुराइयाँ मनुष्य के सामने खुलकर आ जाती है और वह संकल्प करके उन्हें दूर हटाने का प्रयत्न कर सकता है, जीवन को सबल और पवित्र बनाने का प्रयत्न कर सकता है। प्र.११ मैं जिसकी प्रशंसा नहीं कर सकता, उसकी निंदा करने में भी मुझे लाज लगती है / उपर्युक्त उत्तम विचार किसने प्रकट किये ? उत्तर- श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुरं (टेगौर) ने / प्र.१२ धर्म के आठ अंगों में आत्म-निंदा को कौन सा अंग बताया गया है ? उत्तर- धर्म के आठ अंग इस प्रकार काव्य में किये गये है करुणा, वच्छलता, सुजनता, आत्म-निंदा पाठ / समता, भक्ति, विरागता, धर्म राग गुण आठ // इसमें आत्मनिंदा को चौथा अंग बताया गया है / प्र.१३ अवर्णवादी न क्वापि, राजादिषु विशेषतः / अर्थ- सदगहस्थ को किसी की भी निंदा नहीं करना चाहिए और खासकर-राजा, मंत्री आदि अधिकरी एवं धर्मगुरूओं आदि की तो कभी भी निंदा नहीं करनी चाहिए। प्रश्न-उपर्युक्त विचार कौन से महान आचार्यने व्यक्त किये ? उत्तर- आचार्य हेमचन्द्र ने / / प्र.१४ निंदक एकहु मति मिलै, पापी मिलो हजार / इक निंदक के सीस पर, कोटि पाप को भार // . उपर्युक्त दोहे के रचियता कौन हैं ? उत्तर- सन्त कबीर / प्र.१५ होवे धर्म प्रचार.........प्यारे भारत में (टेर) . ईर्ष्या करे ना कोई भाई, दिल में सबके हो नरमाई / सरल बने नर-नार...........प्यारे भारत में (1) / 169] - इक /
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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