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________________ आगम निबंधमाला .. प्र.३ निन्दा को मधुर विष (मीठा जहर) क्यों कहा गया है ? उत्तर- मधुर विष उसे कहते हैं जो धीरे-धीरे हमारे स्वास्थ्य को गिराता है, हमें उसका यकायक अहसास भी नहीं होता / उसी प्रकार निदा भी हमारे आत्मा के गुणों का धीरे-धीरे घात करती है। प्र.४ निंदक व्यक्ति की दृष्टि कैसी होती है ? उत्तर- निंदक व्यक्ति को दूसरों के अवगुण ही नजर आते हैं / परदोष दर्शन में वह व्यक्ति इतना अधिक व्यस्त रहता है कि उसे स्वदोषदर्शन के लिए समय ही नहीं मिलता। . प्र.५ पिट्ठिमसं न खाएज्जा / दशवैकालिक सूत्र,अ. 8, गाथा-४७ इसका अर्थ बताइये / उत्तर- पीठ का मांस मत खाओ अर्थात् पर निंदा मत करों या किसी की पीठ पीछे निंदा मत करो / प्र.६ अप्पणो थवणा, परेसु निंदा.। -प्रश्न व्याकरण सूत्र, उपर्युक्त शास्त्र के शब्दों का अर्थ कीजिए। उत्तर अपनी प्रशंसा और दूसरों की निंदा करना भी असत्य के समकक्ष है, भले ही वह सत्य हो / प्र.७ निंदा करने का प्रमुख कारण क्या होता है ? उत्तर- 1. स्वार्थ 2. ईर्ष्या 3. कुढ़ना 4., दूसरों की प्रशंसा या बढ़ती सहन न करना ५.अहंकार करना / 6. बदले की भावना 7. तिरस्कार के भाव / प्र.८ सन्तों की निंदा न कीजिये, कभी कोई नर भूल / जुगाँ जुगाँ नर दुःख सहे, रहे नरक में झूल // उपर्युक्त दोहे में कवि ने क्या कहा है ? उत्तर- कवि कहता है कि जो सन्त महात्मा है, त्यागी-ध्यानी, महापुरुष है, उनकी भूल कर भी निंदा मत करो। यदि ऐसा करोगे तो जन्मजन्मान्तर तक दुःख सहने पड़ेंगे और नारकीय कष्ट झेलने पडेंगे। प्र.९ आत्म-निंदा कब सम्भव है ? / उत्तर हृदय में जब सरलता होगी, विवेक दृष्टि ज़ागत होगी, तब मनुष्य अपने दोषों को देख सकेगा। अपने दोष देखने पर जब उनके 168
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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