________________ आगम निबंधमाला कालांतर से वे ही धर्मघोष आचार्य वहाँ पधारे, उपदेश सुनकर मणिसागर ने 12 व्रत स्वीकार किए / श्रावक धर्म की शुद्ध आराधना की और देवगति को पाप्त किया / __ इस प्रकार सुसंगत पाकर और सत्य पर अटल रह कर मणि सागर ने अपने जीवन के अवगुण को भी गुण में परिवर्तित कर दिया एवं सुख का भागीदार बना / हमें भी उनके जीवन से दृढ सत्यप्रतिज्ञ बनकर आत्म कल्याण की साधना करनी चाहिए / असत्य का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए / सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप / जाँके हृदय साँच है, ताँके हृदय आप // निबंध-४६ निन्दा : प्रश्नोत्तर प्र.१ निन्दा किसे कहते हैं ? उत्तर- 1- अन्य में रहे दोषों का प्रकटीकरण करना निंदा है / 2- जो चीज जैसी नहीं है, वैसी बताना या जो चीज जैसी है, वैसी नहीं बताना निंदा है। 3- दोष की सत्यता पर विचार किये बिना ही किसी का दोष प्रकट करना निदा है। 4- दूसरों के गुणों को ढ़कना और उनके दोषों को उघाड़ना पर निंदा है। प्र.२ निन्दा करने से क्या-क्या हानियाँ होती है ? उत्तर- 1- पाप कर्म का बंध होता है / 2- गुणवान व्यक्ति भी निर्गुणी बन जाता है / 3- मित्र भी शत्रु बन जाता हैं / 4- अहंकार-अभिमान, ईर्ष्या आदि दोष पुष्ट बनते हैं / 5- निन्दा से अठारह पापों की पुष्टि होती है / 6- पर निन्दा के कारण अकारण झगड़े खड़े होते हैं / 7- निंदा करना पंद्रहवें पाप का सेवन करना है / [167